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* ३०४ मूलसूत्र : एक परिशीलन
१२ ( विक्रम पूर्व ४८८ ) में ९२ वें वर्ष की आयु में वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त हुए।
गणधर इन्द्रभूति के व्यक्तित्त्व की विशेषताएँ
इन्द्रभूति गौतम के व्यक्तित्त्व को शब्दों की सीमित परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। उनका व्यक्तित्त्व विराट् और विशाल था । उनके जीवन को उजागर करने वाले निम्नोक्त बिन्दु द्रष्टव्य हैं
(१) वे निरन्तर बेले - बेले की तपस्या करते थे ।
(२) उनकी दिनचर्या निश्चित थी। प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में दिन को भिक्षा / आहार एवं रात्रि को निद्रा तथा चतुर्थ प्रहर में पुनः स्वाध्याय । ९०
(३) चौदह हजार श्रमण-परिवार के प्रमुख होते हुए भी तथा ५०० शिष्य हरदम उनके चरणों में प्रतिक्षण करबद्ध खड़े रहते थे, उनके आदेश को शिरोधार्य करना तथा पालन करना अपना अहोभाग्य समझते थे । इनकी शिष्यादि सम्पदा इतनी होते हुए भी पारणे के दिन स्वयं भिक्षाचरी को जाते थे । घर-घर भिक्षाटन करते थे ।
(४) गौतम स्वामी अपने लघु साधकों को आहार के लिए प्रेमपूर्वक आमंत्रित करते थे ।
(५) चौदह हजार श्रमणों के अर्हणीय-पूजनीय संघ सुमेरु इन्द्रभूति गौतम स्वयं अपने हाथ से वस्त्र - पात्रादि की प्रतिलेखना करते थे ।
(६) वे चतुर्दश पूर्व शास्त्रों के पाठी ही नहीं, रचयिता भी थे ।
(७) अपनी भूल का पता लगते ही वे तत्क्षण आनन्द श्रमणोपासक के पास क्षमायाचना करने गये । ९
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(८) उनके मृदु और आत्मीय व्यवहार का स्थायी प्रभाव ७८ वर्ष के अबोध बालक अतिमुक्तक पर पड़ा। वह भी श्रमणधर्म में दीक्षित होकर मुक्तिगामी बने । ९२
(९) भगवान के चरणों में अपनी शंकाओं का समाधान पाने हेतु चलाकर आने से पहले स्कन्दक परिव्राजक का वे दस-बीस कदम सम्मुख जाकर स्वागत करते हैं । ९३
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