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अनुयोगद्वारसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २३१
निर्युक्त्यनुगम, ये दो भेद हैं। निर्युक्त्यनुगम के तीन भेद हैं-निक्षेपनियुक्त्यनुगम, उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम और सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम। इसमें निक्षेपनियुक्त्यनुगम का विवेचन किया जा चुका है। उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम के उद्देश, निर्देश, निर्गम आदि छब्बीस भेद बताये हैं। सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम का अर्थ है-अस्खलित, अमिलित, अन्य सूत्रों के पाठों से असंयुक्त, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ-ओष्ठ से विप्रमुक्त तथा गुरुमुख से ग्रहण किये हुए उच्चारण से युक्त सूत्रों के पदों का स्वसिद्धान्त के अनुरूप विवेचन करना। नय-स्वरूप
अनुयोगद्वार का चौथा द्वार नय है। नय जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है। जो वस्तु का बोध कराते हैं वे नय हैं।६३ वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। वस्तु के उन सम्पूर्ण धर्मों का यथार्थ और प्रत्यक्ष ज्ञान केवल सर्वज्ञ-सर्वदर्शी को ही हो सकता है। पर सामान्य मानव में वह सामर्थ्य नहीं है। सामान्य मानव एक समय में कुछ धर्मों का ही ज्ञान कर पाता है। यही कारण है कि उसका ज्ञान आंशिक है, आंशिक ज्ञान को नय कहते हैं। यह स्मरण रखना होगा, प्रमाण और नय ये दोनों ज्ञानात्मक हैं। किन्तु दोनों में अन्तर यही है कि प्रमाण सम्पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराता है तो नय वस्तु के एक अंश का ज्ञान कराता है। प्रमाण को सकलादेश और नय को विकलादेश कहा है। सकलादेश में वस्तु के समस्त धर्मों की विवक्षा होती है पर विकलादेश में एक धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों की विवक्षा नहीं होती। विकलादेश को सम्यक् इसीलिए माना जाता है कि वह जिस धर्म की विवक्षा करता है उसके अतिरिक्त अन्य धर्मों का प्रतिषेध नहीं करता किन्तु उन धर्मों की उपेक्षा करता है। __वक्ता के अभिप्राय की दृष्टि से नय का लक्षण इस प्रकार है-विरोधी धर्मों का निषेध न करते हुए वस्तु के एक अंश या धर्म को ग्रहण करने वाला ज्ञाता का अभिप्राय नय है।६४ दूसरे शब्दों में अनेकान्तात्मक वस्तु में विरोध के बिना हेतु की मुख्यता से साध्यविशेष की यथार्थता को प्राप्त कराने में समर्थ शब्दप्रयोग नय है।६५ जितने वचन के प्रकार हैं, उतने ही नय भी हैं।६६ इस तरह नय के अनन्त भेद हो सकते हैं। तथापि उनका समाहार करते हुए और समझने की सरलता की दृष्टि से उन सब वचन-पक्षों को अधिक से अधिक सात भेदों में विभाजित कर दिया है। अनुयोगद्वार में सात नयों का वर्णन है
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