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अनुयोगद्वारसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २२९ *
में आचार्य मल्लिसेन मल्लधारी ने निक्षेप की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की हैवस्तु का नाम आदि में क्षेप करने या धरोहर रखना निक्षेप है।५४ षट्खण्डागम की धवला टीका में आचार्य वीरसेन ने निक्षेप की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है-संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय में अवस्थित वस्तु को उनसे निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है, वह निक्षेप है।५५ दूसरे शब्दों में यूँ कह सकते हैं, जो अनिर्णीत वस्तु का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव द्वारा निर्णय कराये वह निक्षेप है। इसे यों भी कह सकते हैं-अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत का निरूपण करना निक्षेप है। अर्थात् शब्द का अर्थ में और अर्थ का शब्द में आरोप करना यानि शब्द और अर्थ को किसी एक निश्चित अर्थ में स्थापित करना निक्षेप है।५६ ___ संक्षिप्त सार यह है कि जिसके द्वारा वस्तु का ज्ञान या उपचार से वस्तु में जिन प्रकारों से आक्षेप किया जाय वह निक्षेप है। क्षेपणक्रिया के भी दो प्रकार हैं, प्रस्तुत अर्थ का बोध कराने वाली शब्द-रचना और दूसरा प्रकार है अर्थ का शब्द में आरोप करना। क्षेपणक्रिया वक्ता के भावविशेष पर आधृत है। ___ आचार्य उमास्वाति ने निक्षेप का पर्यायवाची शब्द न्यास दिया है। तत्त्वार्थराजवार्तिक में 'न्यासो निक्षेपः'५७ के द्वारा स्पष्टीकरण किया है। नाम आदि के द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को न्यास या निक्षेप कहते हैं।५८
निक्षेप के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार प्रकार हैं। प्रस्तुत द्वार में निक्षेप के ओघनिष्पन्ननिक्षेप, नामनिष्पन्ननिक्षेप और सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेपइस प्रकार तीन भेद किये हैं। ओघनिष्पन्ननिक्षेप अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा के रूप में चार प्रकार का है। अध्ययन के नामाध्ययन, स्थापनाध्ययन, द्रव्याध्ययन और भावाध्ययन, ये चार भेद हैं। अक्षीण के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, ये चार भेद हैं। इन चार में भावाक्षीणता के आगमतःभावाक्षीणता और नोआगमतःभावाक्षीणता कहलाती है। जो व्यय करने पर भी किंचिन्मात्र भी क्षीण न हो वह नोआगमतःभावाक्षीणता कहलाती है। जैसे-एक जगमगाते दीपक से शताधिक दीपक प्रज्वलित किये जा सकते हैं, किन्तु उससे दीपक की ज्योति क्षीण नहीं होती वैसे ही आचार्य श्रुत का दान देते हैं। वे स्वयं भी श्रुतज्ञान से दीप्त रहते हैं और दूसरों को भी प्रदीप्त करते हैं। सारांश यह है कि श्रुत का क्षीण न होना भावाक्षीणता है।
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