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________________ अनुयोगद्वारसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २२७ * मध्यम और उत्कृष्ट, ये तीन भेद हैं। असंख्येयक के परीतासंख्येयक, युक्तासंख्येयक और असंख्येयासंख्येयक तथा इन तीनों के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट, ये तीन-तीन भेद हैं। इस प्रकार असंख्येयक के नौ भेद हुए। अनन्तक के परीतान्तक, युक्तानन्तक और अनन्तानन्तक, ये तीन भेद हैं। इनमें से परीतान्तक और युक्तानन्तक के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट, ये तीन-तीन भेद हैं और अनन्तानन्तक के जघन्य और मध्यम, ये दो भेद हैं। इस प्रकार कुल आठ भेद होते हैं। संख्येयक के ३, असंख्येयक के ९ और अनन्तक के ८, कुल २० भेद हुए। यह भावप्रमाण का वर्णन हुआ। हमने पूर्व पृष्ठों में सामायिक के चार अनुयोगद्वारों में से प्रथम अनुयोगद्वार उपक्रम के आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार और समवतार, ये छह भेद किये थे। उनमें आनुपूर्वी, नाम और प्रमाण पर चिन्तन किया जा चुका है। अवशेष तीन पर चिन्तन करना है। वक्तव्यता के स्वसमयवक्तव्यता, परसमयवक्तव्यता और उभयसमयवक्तव्यता, ये तीन प्रकार हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि स्व-सिद्धान्तों का वर्णन करना स्वसमयवक्तव्यता है। अन्य मतों के सिद्धान्तों की व्याख्या करना परसमयवक्तव्यता है। स्वपर-उभय मतों की व्याख्या करना उभयसमयवक्तव्यता है। जो जिस अध्ययन का अर्थ है अर्थात् विषय है वही उस अध्ययन का अर्थाधिकार है। उदाहरण के रूप में, जैसे आवश्यक सूत्र के छह अध्ययनों का सावद्ययोग से निवृत्त होना ही उसका विषयाधिकार है वही अर्थाधिकार कहलाता है। समवतार का तात्पर्य यह है कि आनुपूर्वी आदि जो द्वार हैं उनमें उन-उन विषयों का समवतार करना अर्थात् सामायिक आदि अध्ययनों की आनुपूर्वी आदि पाँच बातें विचार कर योजना करना। समवतारनाम के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावसमवतार इस प्रकार छह भेद हैं। द्रव्यों का स्वगुण की अपेक्षा से आत्मभाव में अवतीर्ण होना-व्यवहारनय की अपेक्षा से पररूप में अवतीर्ण होना आदि द्रव्यसमवतार हैं। क्षेत्र का भी स्वरूप, पररूप और उभयरूप से समवतार होता है। कालसमवतार श्वासोच्छ्वास से संख्यात, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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