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अनुयोगद्वारसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन २१७
किया गया है। प्रस्तुत वर्गीकरण करने के बावजूद भी यह भेद - रेखा नहीं खींची जा सकती कि अन्य आगमों में अन्य अनुयोगों का वर्णन नहीं है। उदाहरण के रूप में, उत्तराध्ययनसूत्र में धर्मकथा के अतिरिक्त दार्शनिक तथ्य भी पर्याप्त मात्रा में है। भगवतीसूत्र तो अनेक विषयों का विराट् सागर है। आचारांग आदि में भी अनेक विषयों की चर्चाएँ हैं। कुछ आगमों को छोड़कर अन्य आगमों में चारों अनुयोगों का सम्मिश्रण है। यह जो वर्गीकरण हुआ है वह स्थूल दृष्टि को लेकर हुआ है। व्याख्या -क्रम की दृष्टि से यह वर्गीकरण अपृथक्त्वानुयोग और पृथक्त्वानुयोग के रूप में दो प्रकार का है।
हम यहाँ पर चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग और धर्मकथानुयोग पर चिन्तन न कर केवल अनुयोगद्वारसूत्र पर चिन्तन करेंगे। मूल आगमों में नन्दी के पश्चात् अनुयोगद्वार का नाम आता है। नन्दी और अनुयोगद्वार ये दोनों आगम चूलिका के सूत्र के नाम से पहचाने जाते हैं । चूलिका शब्द का प्रयोग उन अध्ययनों या ग्रन्थों के लिए होता है जिनमें अवशिष्ट विषयों का वर्णन या वर्णित विषयों का स्पष्टीकरण किया गया हो ।
दशवैकालिक और महानिशीथ के अन्त में भी चूलिकाए - चूलाए-चूड़ाए प्राप्त होती है। चूलिकाओं को वर्तमान युग की भाषा में ग्रन्थ का परिशिष्ट कह सकते हैं । नन्दी और अनुयोगद्वार भी आगम साहित्य के अध्ययन के लिए परिशिष्ट का कार्य करते हैं। जैसे पाँच ज्ञानरूप नन्दी मंगलस्वरूप है वैसे ही अनुयोगद्वारसूत्र भी समग्र आगमों को और उसकी व्याख्याओं को समझने में कुंजी सदृश है। ये दोनों आगम एक-दूसरे के परिपूरक हैं। आगमों के वर्गीकरण में इनका स्थान चूलिका में है । जैसे भव्य मन्दिर शिखर से अधिक शोभा पाता है वैसे ही आगम मन्दिर भी नन्दी और अनुयोगद्वार रूप शिखर से अधिक
जगमगाता है।
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हम पूर्व पंक्तियों में यह बता चुके हैं- अनुयोग का अर्थ व्याख्या या विवेचन है । भद्रबाहु स्वामी ने आवश्यकनिर्युक्ति में अनुयोग के अनुयोग नियोग, भाषा - विभाषा और वार्तिक ये पर्याय बताये हैं । ४३ जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य४४ में, संघदासगणी ने बृहत्कल्पभाष्य ४५ में इन सभी पर्यायों का विवरण प्रस्तुत किया है। यह सत्य है कि जो पर्याय दिये गये हैं, वे सभी पर्याय पूर्ण रूप से एकार्थक नहीं हैं, किन्तु अनुयोगद्वार के जो विविध प्रकार हैं, उन्हें ही पर्याय लिखने में आया है । ४६
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