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________________ * १९८ * मूलसूत्र : एक परिशीलन -.-.-.-.-.-.-.-.-.-. ३७. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, द्वितीय भाग, पृष्ठ ३१४ ३८. जैनधर्म के प्रभावक आचार्य, पृष्ठ ५१ 39. History of Indian Literature, Vol. II, Page 47, F.N. 1 ४०. The Dasavaikalika Sutra : A Study, Page 9 ४१. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, पृष्ठ ३१४ ४२. दसवैकालिक हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र ११-१२ ४३. “आयप्पवायपुव्वा, निजूढा होइ धम्मपन्नती। कम्मप्पवायपुव्वा, पिंडस्स उ एसणा तिविहा॥ सच्चप्पवायपुव्वा, निजूढा होइ वक्कसुद्धी उ। अवसेसा निजूढा, नवमस्स उ तइयवत्थूओ।" -दशवकालिकनियुक्ति, गाथा १६-१७ ४४. “बीओऽवि अ आएसो, गणिपिडगाओ दुवालसंगाओ। एअं किर निजढं, मणगस्स अणुग्गहट्टाए॥" -वही, गाथा १८ ४५. (क) “संतिमे तसा पाणा, तं जहा-अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया समुच्छिमा उब्भिया ओववाइया।" -आचारांग १/११८ तुलना करें"अंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा सम्मुच्छिमा उब्भिया उववाइया।" -दशवैकालिक, अध्ययन ४, सूत्र ९ (ख) “ण मे देति ण कुप्पेज्जा" -आचारांग २/१०२ तुलना करें“अदेंतस्स न कुप्पेजा।" -दशवकालिक ५/२/२८ (ग) “सामायिकमाहु तस्स तं जं गिहिमत्तेऽसणं ण भक्खति।" -सूत्रकृतांग १/२/२/१८ तुलना करें “सन्निही गिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए।" -दशवकालिक ३/३ ४६. दशवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि की भूमिका, पृष्ठ १२ ४७. "आरातीयैः पुनराचार्यैः कालदोषात्संक्षिप्तायुर्मतिबलशिष्यानुग्रहार्थं दशवैकालिकाद्युपनिबद्धम्। तत्प्रमाणमर्थतस्तदेवेदमिति क्षीरार्णव-जलं घटगृहीतमिव। -सर्वार्थसिद्धि १/२० ४८. तत्त्वार्थभाष्य १/२० ४९. “दसवेयालं च उत्तरज्झयणं।" -गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा ३६७ ५०. कषायपाहुड (जयधवला सहित), भाग १, पृष्ठ १३/२५ ५१. मूलाराधना, आश्वास ४, श्लोक ३३३, वृत्ति पत्र ६११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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