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१९४ मूलसूत्र : एक परिशीलन
संवत् २०२० में साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ ( सैलाना) से प्रकाशित हुआ। सन् १९३६ में हिन्दी अनुवाद सहित मुनि सौभाग्यचन्द्र 'सन्तबाल' ने संपादित किया, वह संस्करण श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस (बम्बई) ने प्रकाशित करवाया।
मूल टिप्पण सहित दशवैकालिक का एक अभिनव संस्करण मुनि नथमल जी द्वारा संपादित विक्रम संवत् २०२० में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट (कलकत्ता) से और उसी का द्वितीय संस्करण सन् १९७४ में जैन विश्व भारती (लाडनूं) से प्रकाशित हुआ । सन् १९३९ में दशवैकालिक का गुजराती छायानुवाद गोपालदास जीवाभाई पटेल ने तैयार किया, वह जैन साहित्य प्रकाशन समिति ( अहमदाबाद) से प्रकाशित हुआ । इसी तरह दशवैकालिक का अंग्रेजी अनुवाद जो W. Schubring द्वारा किया गया, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है। सन् १९३७ में पी. एल. वैद्य (पूना) ने भी दशवैकालिक का आंग्ल अनुवाद कर उसे प्रकाशित किया है।
दशवैकालिक का मूल पाठ सन् १९१२, सन् १९२४ में जीवराज घेलाभाई दोशी ( अहमदाबाद ) तथा सन् १९३० में उम्मेदचंद रायचंद ( अहमदाबाद), सन् १९३८ में हीरालाल हंसराज (जामनगर), विक्रम संवत् २०१० में शान्तिलाल वनमाली सेठ (ब्यावर), सन् १९७४ में श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय (उदयपुर) तथा अन्य अनेक स्थलों से दशवैकालिक के मूल संस्करण छपे हैं। श्री पुण्यविजय जी द्वारा संपादित और श्री महावीर जैन विद्यालय (बम्बई) से सन् १९७७ में प्रकाशित संस्करण सभी मूल संस्करणों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संस्करण में प्राचीनतम प्रतियों के आधार से अनेक शोध-प्रधान पाठान्तर दिए गए हैं, जो शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं । पाठ शुद्ध है।
स्थानकवासी समाज एक प्रबुद्ध और क्रान्तिकारी समाज है। उसने समय-समय पर विविध स्थानों से आगमों का प्रकाशन किया तथापि आधुनिक दृष्टि से आगमों के सर्वजनोपयोगी संस्करण का अभाव खटक रहा था। उस अभाव की पूर्ति का संकल्प मेरे श्रद्धेय सद्गुरुवर्य राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी पूज्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के स्नेह-साथी व सहपाठी श्रमणसंघ के युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी मधुकर मुनि जी ने किया । युवाचार्यश्री ने इस महाकार्य को शीघ्र सम्पन्न करने हेतु सम्पादक - मण्डल का गठन किया और साथ ही विविध मनीषियों को सम्पादन, विवेचन करने के लिए उत्प्रेरित
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