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दशवकालिकसत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * १८५ *
"भगवन् ! मैं कहाँ पर उत्पन्न होऊँगा?' गौतम ने समाधान दिया-“छठे नरक में।" प्रश्नोत्तर के रूप में कहीं-कहीं पर तार्किक शैली के भी दर्शन होते हैं। भाष्य
नियुक्तियों की व्याख्या-शैली बहुत ही संक्षिप्त और गूढ़ थी। नियुक्तियों का मुख्य लक्ष्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना था। नियुक्तियों के गुरु गम्भीर रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए कुछ विस्तार से प्राकृत भाषा में जो पद्यात्मक व्याख्याएँ लिखी गईं, वे भाष्य के नाम से विश्रुत हैं। भाष्यों में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियाँ, लौकिक कथाएँ और परम्परागत श्रमणों के आचार-विचार और गतिविधियों का प्रतिपादन किया गया है। दशवैकालिक पर जो भाष्य प्राप्त है, उसमें कुल ६३ गाथाएँ हैं। दशवैकालिकचूर्णि में भाष्य का उल्लेख नहीं है, आचार्य हरिभद्र ने अपनी वृत्ति में भाष्य और भाष्यकार का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया है,२४० भाष्यकार के नाम का उल्लेख नहीं किया और न अन्य किसी विज्ञ ने ही इस सम्बन्ध में सूचन किया है।४१ जिन गाथाओं को आचार्य हरिभद्र ने भाष्यगत माना है, वे गाथाएँ चूर्णि में भी हैं। इससे यह स्पष्ट है कि भाष्यकार चूर्णिकार से पूर्ववती हैं। इसमें हेतु, विशुद्धि, प्रत्यक्ष, परोक्ष, मूलगणों व उत्तरगुणों का प्रतिपादन किया गया है। अनेक प्रमाण देकर जीव की संसिद्धि की गई है। दशवैकालिकभाष्य दशवैकालिकनियुक्ति की अपेक्षा बहुत ही संक्षिप्त है।
चूर्णि
____ आगमों पर नियुक्ति और भाष्य के पश्चात् शुद्ध प्राकृत में और संस्कृत मिश्रित प्राकृत में गद्यात्मक व्याख्याएँ लिखी गईं। वे चूर्णि के रूप में विश्रुत हैं। चूर्णिकार के रूप में जिनदासगणी महत्तर का नाम अत्यन्त गौरव के साथ लिया जा सकता है। उनके द्वारा लिखित सात आगमों पर चूर्णियाँ प्राप्त हैं। उनमें एक चूर्णि दशवैकालिक पर भी है। दशवैकालिक पर दूसरी चूर्णि अगस्त्यसिंह स्थविर की है। आगमप्रभाकर पुण्यविजय जी म. ने उसे संपादित कर प्रकाशित किया है। उनके अभिमतानुसार अगस्त्यसिंह स्थविर द्वारा रचित चूर्णि का रचनाकाल विक्रम की तीसरी शताब्दी के आसपास है।४२ अगस्त्यसिंह कोटिगणीय वज्रस्वामी की शाखा के एक स्थविर थे, उनके गुरु का नाम ऋषिगुप्त था। इस प्रकार दशवैकालिक पर दो चूर्णियाँ प्राप्त हैं-एक जिनदासगणी महत्तर की तथा दूसरी अगस्त्यसिंह स्थविर की। अगस्त्यसिंह ने
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