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* १२४ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
वैचारिक क्रान्ति का जीता-जागता प्रतीक : प्राकृत साहित्य
प्राकृत साहित्य का उद्भव जन-सामान्य की वैचारिक क्रान्ति के फलस्वरूप हुआ है। श्रमण भगवान महावीर और तथागत बुद्ध के समय संस्कृत आभिजात्य वर्ग की भाषा थी। वे उस भाषा में अपने विचार व्यक्त करने में गौरवानुभूति करते थे। जन-बोली को वे घृणा की दृष्टि से देखते थे। ऐसी स्थिति में श्रमण भगवान महावीर और तथागत बुद्ध ने उस युग की जन-बोली प्राकृत
और पाली को अपनाया। यही कारण है, जैन आगमों की भाषा प्राकृत है और बौद्ध त्रिपिटकों की भाषा पाली है। दोनों भाषाओं में अद्भुत सांस्कृतिक ऐक्य है। दोनों भाषाओं का उद्गम बिन्दु भी एक है, प्रायः दोनों का विकास भी समान रूप से ही हुआ है। समवायाङ्ग' और औपपातिकसूत्र के अनुसार सभी तीर्थंकर अर्ध-मागधी भाषा में उपदेश करते हैं। चारित्रधर्म की आराधना और साधना करने वाले जिज्ञासु मन्द बुद्धि स्त्री-पुरुषों पर अनुग्रह करके जन-सामान्य के लिए सिद्धान्त सुबोध हो, इसलिए प्राकृत में उपदेश देते हैं। आचार्य जिनदासगणी महत्तर अर्ध-मागधी का अर्थ दो प्रकार से करते हैं-यह भाषा मगध के एक भाग में बोली जाती थी, इसलिए अर्द्ध-मागधी कहलाती है, दूसरे इस भाषा में अट्ठारह देशी भाषाओं का सम्मिश्रण हुआ है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मागधी और देशज शब्दों का इस भाषा में मिश्रण होने से यह अर्ध-मागधी कहलाती है। अर्ध-मागधी को ही सामान्य रूप से प्राकृत कहते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने आगम-साहित्य की भाषा को आर्ष प्राकृत कहा है। चिन्तकों का अभिमत है कि आगमों की भाषा में भी दीर्घकाल में परिवर्तन हुआ है। उदाहरण के रूप में आचार्य शीलांक ने सूत्रकृताङ्ग की टीका में स्पष्ट रूप से लिखा है कि सूत्रादर्शों में अनेक प्रकार के सूत्र उपलब्ध होते हैं, पर हमने एक ही आदर्श को स्वीकार कर विवरण लिखा है। यदि कहीं सूत्रों में विसंवाद दृग्गोचर हो तो चित्त में व्यामोह नहीं करना चाहिए। कहीं पर 'य' श्रुति की प्रधानता है तो कहीं पर 'त' श्रुति की, कहीं पर ह्रस्व स्वर का प्रयोग है तो कहीं पर हस्व स्वर के स्थान पर दीर्घ स्वर का प्रयोग है। आगम-प्रभावक श्री पुण्यविजय जी महाराज ने बृहत्कल्पसूत्र, कल्पसूत्र और अंगविजा ग्रन्थों की प्रस्तावना में इस सम्बन्ध में उल्लेख किया है। आगमों का वर्गीकरण
आगमों का सबसे उत्तरवर्ती वर्गीकरण है-अंग, उपांग, मूल और छेद। आचार्य देववाचक ने जो आगमों का वर्गीकरण किया है उसमें न उपांग शब्द
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