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________________ ६४ जैनदर्शन अपेक्षा श्रुत ही प्रधान है । अतएव मन का विषय श्रुत कहा गया है'श्रुतमनिन्द्रियस्य' (तत्त्वार्थसूत्र २, २२) ये पाँचो ही इन्द्रियाँ दो-दो प्रकार की हैं : द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रिय के दो भेद हैं : निर्वत्ति और उपकरण । शरीरगत इन्द्रियों की आकृतियाँ, जो पुद्गलस्कन्धों की विशिष्ट रचनाएँ हैं, 'निवृत्ति' इन्द्रिय हैं । पुद्गल-स्कन्धों की बाह्य रचना को बाह्य निर्वृत्ति इन्द्रिय कहते हैं । बाह्य निर्वृत्ति-इन्द्रिय को यदि खड्ग की उपमा दें तो आभ्यन्तर निर्वृत्तिइन्द्रिय को उसकी धार कह सकते हैं । इस धार की विषयग्रहण में साधनभूत शक्ति को 'उपकरण' इन्द्रिय कहते हैं । भावेन्द्रिय भी दो प्रकार की है : लब्धि और उपयोग । ज्ञान के प्रकारभूत मतिज्ञान आदि के आवारक कर्मों के क्षयोपशम (कर्मों का एक प्रकार का नरम होना क्षयोपशम है) को 'लब्धि' इन्द्रिय कहते हैं । यह क्षयोपशम एक प्रकार का आत्मिक परिणाम अथवा आत्मिक शक्ति है । इस लब्धि तथा निर्वृत्ति और उपकरण इन तीनों के समवाय से रूप आदि विषयों का सामान्य अथवा विशेषरूप से बोध होना उपयोग-इन्द्रिय है । इस प्रकार पाँचो ही इन्द्रियाँ निवृत्ति, उपकरण, लब्धि और उपयोग के भेद से चार-चार प्रकार की हुईं । इसका अर्थ यह हुआ कि इन चारों प्रकार की समष्टि को ही स्पर्शन आदि एक एक पूर्ण इन्द्रिय कह सकते हैं । इस समष्टि में जितनी न्यूनता उतनी ही इन्द्रियों की अपूर्णता । उपयोग यद्यपि ज्ञानरूप है फिर भी निर्वृत्ति, उपकरण एवं लब्धि इन तीनों की समष्टि का कार्य होने से उपचारवश अर्थात् कार्य में कारण का आरोप करके उसे भी इन्द्रिय कहा है । 'उपयोग' की अर्थात् ज्ञान की उत्पत्ति में यदि 'लब्धि' आन्तरिक साधनशक्ति है तो 'निर्वृत्ति' और 'उपकरण', जो कि पुद्गलमय द्रव्येन्द्रिय हैं, बाह्य साधन हैं । आन्तरिक साधनशक्तिरूप 'लब्धि' का उपयोग ज्ञान अथवा बोध होना है, अत: उसके लिये 'उपयोग' संज्ञा बराबर घट सकती है । . ज्ञान के पाँच भेदों में से मति और श्रुत के बारे में देखा । अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान स्पष्ट प्रत्यक्ष हैं-ये व्यावहारिक नहीं किन्तु पारमार्थिक प्रत्यक्ष हैं, क्योंकि ये इन्द्रिय की अपेक्षा रखे बिना केवल आत्मिक शक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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