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उपदेश हम देख सकते हैं ।] महावीर ने खूब बलपूर्वक कहा हैं कि मनुष्य अपना भला, अपना आत्महित, अपना जीवनशोधन जितना अधिक साधता है उतना ही अधिक वह दूसरे का भला-दूसरे का हित कर सकता है । आगमों में उपलब्ध होनेवाली इनकी वाणी के उत्तमोत्तम झरनों के कुछ अमृतबिन्दु नमूने के तौर पर आगे (इस प्रस्तावना के बाद) दिए हैं । इन पर से पाठक को इस संत की विकासगामी और क्रान्तिकारी प्रकृति का कुछ ख्याल आ सकेगा ।
__ईस्वी सन् पूर्व ५९९ वर्ष में जन्मे हुए और ७२ वर्ष की आयु वाले प्रभु महावीर से पूर्व जिन पार्श्व हुए हैं । वे भी ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में इतिहासप्रसिद्ध हैं । इन पार्श्व के निर्वाण के २५० वर्ष पश्चात् महावीर का निर्वाण हुआ। इस पर से समझ में आ सकता है कि महावीर ने ढाई हजार वर्ष पूर्व होनेवाले तीर्थंकर महावीर ने किसी नए धर्म की स्थापना नहीं की
१. Let him that would move the world, first move himself.'
Socrates. २. प्रसिद्ध भारतीयसाहित्यविद् डॉ. गेरिनो (Dr. Guerinot) लिखते हैं कि
There can no longer be any doubt that Pārshva was a historical personage. According to Jaina Tradition he must have lived a hundred years and died 250 years before Mahāvīra. His period of activity, therefore, corresponds to the 8th century B. C. The parents of Mahāvīra were followers of the religion of Pārshva... There have appeared 24 prophets of Jainism. They are ordinarily called Tirthankaras. With the 23rd Pārshvanātha we enter into the region of history and reality.) [Introduction to his Essay on Jaina Bibliography.] अर्थात्---यह नि:सन्देह बात है कि पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक पुरुष थे। जैनपरम्परा के अनुसार उनका आयुष्य सौ वर्ष का था और उनका निर्वाण महावीर से (महावीर के निर्वाण से) ढाई सौ वर्ष पहले हुआ था । इस प्रकार उनका (पार्श्वनाथ का) जीवनकाल ईस्वी सन् पूर्व की आठवीं शताब्दी है । महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ के धर्म के अनुयायी थे । जैनधर्म में जिन्हें तीर्थंकर कहते हैं वैसे परमात्मा २४ हुए हैं । २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय से वास्तविक ऐतिहासिक युग में हमारा प्रवेश होता है ।
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