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पंचम खण्ड
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(फोटो, चित्र-मूर्ति) के रूप में राजा होने से 'स्थापना-राजा' है । 'राजा शब्द का यह अर्थ स्थापना-निक्षेप कहलाता है । मूल वस्तु का चित्र, मूर्ति आदि में आरोप करने को 'स्थापना-निक्षेप' कहते हैं । जो भूतकाल में राजा था अथवा जो भविष्य में राजा होनेवाला है उसे भी 'राजा' कहा जाता है । यह 'द्रव्य से अर्थात् पात्रता की अपेक्षा से राजा होने से 'द्रव्य-राजा' है । 'राजा' शब्द का यह अर्थ द्रव्य-निक्षेप कहलाता है । द्रव्य का अर्थ यहाँ पर 'पात्र' करना चाहिए । इसका मतलब यह है कि जो भूतकाल में राजा था अथवा जो भविष्य में राजा होनेवाला है वह राजत्व का 'पात्र' है; अर्थात् जिसमें वर्तमानकाल में राजत्व नहीं है, परन्तु भूतकाल में था अथवा भविष्य में आनेवाला है । जो राजत्व से राजमान (शोभित) हो वह राजा कहलाता हैयह तो स्पष्ट और सर्वविदित ही है । यह भाव से अर्थात् यथार्थरूप से राजा होने से 'भाव-राजा' है। 'राजा' शब्द का यह अर्थ भाव-निक्षेप कहलाता है । इस तरह नाम-स्थापना-द्रव्य-भाव से शब्द का अर्थविभाग किया जाता है ।
भगवान् की भक्ति उसके नामस्मरण से, उसकी मूर्तिद्वारा अथवा गुरुभक्ति द्वारा की जाती है, क्योंकि सच्चे गुरू को द्रव्य-भगवान् कहा जा सकता है । इस प्रकार नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीनों निक्षेप भावनिक्षेप की ओर ले जाते हैं, साधक को प्रत्यक्ष भगवान् के सान्निध्य में उपस्थित करते हैं।
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