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पंचम खण्ड
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(३) व्यवहार—सामान्यरूप से निर्दिष्ट वस्तु ब्योरे से नहीं समझी जा सकती । अतः उसकी विशेष समझ देने के लिये विशेषरूप से उसके भेदप्रभेद करके उसका पृथक्करण करने वाला विचार 'व्यवहारनय' कहलाता है । सामान्यरूप से 'कपड़ा' कह देने मात्र से उसके विशेष प्रकारों की खबर नहीं पड़ती । अतः उसके विशेष प्रकारों को बतलाने के लिये जो भेद किए जाते हैं वे 'व्यवहार' नय में आते हैं । इस दृष्टान्त पर से समझा जा सकता है कि सतरूप वस्तु का जड़ और चेतन रूप से दो भेद करना इन दो भेदों का भी भेदबहुल विस्तृत विवेचन करना यह व्यवहारनय की प्रवृत्ति है । 'आत्मा एक है' ऐसा संग्रहनय ने कहा, परन्तु उसके भेद तथा अवान्तर भेद करके इन सबका विशेष विवेचन करना यह व्यवहारनय की पद्धति है । संक्षेप में, एकीकरणरूप बुद्धिव्यापार 'संग्रह' पृथक्करणरूप बुद्धिव्यापार 'व्यवहार' है ।
(४) ऋजुसूत्र — वस्तु के सिर्फ वर्तमान पर्याय की ओर यह नय ध्यान आकर्षित करता है। जो विचार भूत और भविष्य काल को एक ओर रखकर केवल वर्तमान का स्पर्श करता है वह 'ऋजुसूत्र' नय है । इस नय की दृष्टि से वर्तमान समृद्धि सुख का साधन होने से उसे समृद्धि कह सकते हैं, परन्तु भूतकालीन समृद्धि का स्मरण अथवा भावि समृद्धि की कल्पना वर्तमानकाल में सुख-सुविधा देनेवाली न होने के कारण उसे समृद्धि नहीं कहा जा सकता । जो पुत्र वर्तमान में उपयोगी हो वही इस नय की अपेक्षा से पुत्र है । बाकी भूतकाल का अथवा भविष्य में होनेवाला पुत्र, जो इस समय नहीं है इसे नय की दृष्टि से पुत्र नहीं कहा जा सकता । इसी प्रकार सुख - दुःख की वर्तमान अवस्था ही इसे मान्य है । वर्तमान में जो उपस्थित हो वही सही, ऐसा यह नय मानता है । कोई गृहस्थ यदि साधुधर्म की शुभ मनोवृत्तिवाला हो तो उसे यह नय साधु न कहकर अव्रती ही कहेगा । सामायिक में बैठा हुआ मनुष्य यदि बुरे विचार करता हो तो इस नय के हिसाब से वह खड्डे में गिरा कहा जायगा । सूक्ष्म ऋजुसूत्र और स्थूल ऋजुसूत्र इस तरह ऋजुसूत्र के दो भेद किए गए हैं। एक 'समय' मात्र के वर्तमान पर्याय को ग्रहण करनेवाला सूक्ष्म - ऋजुसूत्र और अनेक समय के वर्तमान
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