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जैनदर्शन पर्याय को ग्रहण करनेवाला स्थूल-ऋजुसूत्र कहलाता है । सौ वर्ष का मनुष्य पर्याय स्थूल ऋजुसूत्र का उदाहरण हैं ।
ये चार अर्थनय कहलाते हैं, क्योंकि ये वस्तु का विचार करते हैं ।
अब अर्थ के अनुरूप उचित शब्दप्रयोग को माननेवाले अवशिष्ट तीन शब्दनयों को देखें
(५) शब्द-यह नय पर्यायवाची शब्दों को पदार्थवाची मानता है; परन्तु काल, लिंग आदि का यदि उनमें भेद हो तो इस भेद के कारण एकार्थवाची शब्दों में भी यह अर्थभेद मानता है । लेखक के समय में 'राजगृह' नगर विद्यमान होने पर भी प्राचीन समय का राजगृह भिन्न प्रकार का होने से और उसी का वर्णन उसे अभीष्ट होने से वह 'राजगृह नगर था' ऐसा प्रयोग करता है । इस प्रकार कालभेद से अर्थभेद का व्यवहार इस नय के कारण होता है।
इसकी तनिक ब्योरे से विवेचना करें
जो शब्द जिस अर्थ (वस्तु) का वाचक अथवा सूचक होता है उस अर्थ को-वस्तु को सूचित करने के लिये उसी शब्द का प्रयोग करने का 'शब्द' नय ध्यान रखता है, फिर वह वस्तु चाहे कोई व्यक्ति (प्राणी अथवा पदार्थ), हो गुण हो, क्रिया हो अथवा सम्बन्ध हो । प्राणियों में यदि नर अथवा नारी का भेद (लिंगभेद) हो तो उसे दिखलाने के लिये प्रस्तुतः नय भिन्नभिन्न शब्दों का प्रयोग करेगा-जैसे कि पुरुष-स्त्री, गर्दभ-गर्दभी, कुत्ता-कुत्ती, मोर-मोरनी, पुत्र-पुत्री आदि । एक दूसरे की तुलना में यदि एक बड़ा हो
और एक छोट हो तो इस परिमाण भेद को सूचित करने के लिये यह नय भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग करेगा-जैसे कि लोटा-लोटी, कुआँ-कुई पहाड़पहाड़ी, प्याला-प्याली आदि । एक ही मनुष्य भिन्न-भिन्न मनुष्यों के सम्बन्ध से यदि भिन्न-प्रकार का नाता रखता हो तो उस मनुष्य के सम्बन्ध में बोलते समय प्रत्येक नाता अलग अलग दिखलाने के लिये भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग किया जायगा-जैसे कि चाचा, भतीजा, पिता, पुत्र, श्वशुर, दामाद आदि । (ये सब सापेक्ष सम्बन्ध के उदाहरण है ।) यदि कोई क्रिया भूतकाल
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