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________________ पंचम खण्ड नय : अब नय के बारे में देखें । 'प्रमाण' अर्थात् ज्ञान और 'नय' भी ज्ञान (विचारात्मक ज्ञान ) ही है । अनेकान्तात्मकं वस्तु गोचरः सर्वसंविदाम् । एकदेशविशिष्टोऽर्थो नयस्य विषयो मतः ॥ २९॥ - सिद्धसेन, न्यायवतार. अर्थात् अनेकधर्मात्मक वस्तु अंशसहित वस्तु नय का विषय है । ३४९ Jain Education International प्रमाण का विषय है और एक वस्तु जब अखण्डितरूप से भासित होती है तब वह अनेकधर्मात्मक विषय कहलाती है, परन्तु उसी वस्तु में से जब एक अंश अलग होकर प्राधानरूप से भासित होता है तब वह एक अंशविशिष्ट विषय कहलाती है । इस बात को एक दृष्टान्त के द्वारा स्पष्ट करें। जब आँख के सामने कोई एक घोड़ा आता है तब अमुक आकार, अमुक रंग और अमुक कद आदि उसकी विशेषताएँ प्रधानरूप से भासित होती हैं, परन्तु उस समय इन विशेषताओं की प्रधानता होने पर भी अभिन्नरूप से अन्य विशेषताओं के साथ समूचा घोड़ा ही चाक्षुष ज्ञान का विषय बनता है । उस समय उसकी अमुक विशेषताएँ दूसरी विशेषताओं से अलग होकर भासित नहीं हती तथा घोडेरूप अखण्ड पदार्थ में से आकार आदि उसकी विशेषताएँ भी सर्वथा भिन्न भासित नहीं होती। सिर्फ अमुक विशेषताओं द्वारा वह समूचा घोड़ा ही अखण्डरूप से भासित होता है— आँख का विषय बनता है । यही प्रमाण का विषय होने की रीत है । प्रमाण के विषयभूत घोड़े का ज्ञान जब दूसरे को शब्द द्वारा कराना होता है तब उस घोड़े की अमुक विशेषताओं को दूसरी विशेषताओं से बुद्धि द्वारा अलग करके वक्ता कहता है कि 'यह घोड़ा लाल है, ऊँचा है अथवा अमुक आकार - प्रकार का है।' उस समय वक्ता के बौद्धिक व्यापार में अथवा श्रोता की ज्ञानक्रिया में घोड़ा भासमान होने पर भी वह गौण होता है और उसकी विशेषताएँ, जो इतर विशेषताओं से अलग करके कही जाती हैं, वे ही मुख्य होती है । इसीलिये उस समय ज्ञान का विषय बननेवाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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