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________________ पंचम खण्ड ३४५ विचार करने पर देखा जा सकता है कि सप्तभंगी में मूल भंग तो तीन ही हैं : अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य । अवशिष्ट चार भंग तो इन तीन के ही संयोग से बने हैं । सप्तभंगी की विवेचना भगवतीसूत्र [१२,१०.४६९] में भी पाई जाती है । किसी भी प्रश्न का उत्तर देते समय इन सात भंगों में से किसीन-किसी एक भंग का उपयोग करना पड़ता है । प्रस्तुत विषय को सुगमतापूर्वक समझने के लिये हम यहाँ पर एक स्थूल और व्यावहारिक उदाहरण लेकर देखें | किसी मरणासन्न रोगी के बारे में पूछा जाय कि उसकी हालत कैसी है ? तो उसके जवाब में वैद्य अधोलिखित सात उत्तरों में से कोई एक उत्तर देगा (१) अच्छी हालत है । (अस्ति ) (२) अच्छी हालत नहीं है । ( नास्ति ) (३) कल से तो अच्छी है (अस्ति), परन्तु इतनी अच्छी नहीं है कि आशा रखी जा सके (नास्ति) । ( अस्ति, नास्ति) (४) अच्छी या बुरी कुछ नहीं कहा जा सकता । (अवक्तव्य) (५) कल से तो अच्छी है (अस्ति), फिर भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या होगा ? (अवक्तव्य) । (अस्ति- अवक्तव्य ) (६) कल से तो अच्छी नहीं है सकता कि क्या होगा ? (अवक्तव्य ) (नास्ति), फिर भी कहा नहीं जा | ( नास्ति - अवक्तव्य) (७) वैसे तो अच्छी नहीं है ( नास्ति, परन्तु कल की अपेक्षा तो अच्छी है (अस्ति), तो भी कहा नहीं जा सकता कि क्या होगा ? अवक्तव्य ) | ( अस्ति नास्ति - अवक्तव्य ) । इस सामान्य व्यावहारिक उदाहरण पर से सप्तभंगी का विशद ख्याल आ सकता है । इस तरह सप्तभंगी व्यावहारिक बनती है और घटना, परिस्थिति एवं सिद्धान्त का समुचित विश्लेषण कर सकती है । इस पर से हम यह देख सके हैं कि ये सात भंग ( वचनप्रयोग ) भिन्न भिन्न अपेक्षा से भिन्न-भिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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