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पंचम खण्ड
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धर्म ऐसे भी होते हैं जिनका हम अनुभव तो करते हैं, किन्तु भाषा की अपूर्णता के कारण योग्य शब्दों में उन्हें उतार नहीं सकते । उदाहरणार्थ, मीठा कैसा है ?, घी का स्वाद कैसा है ?, कैसी वेदना होती है ? - इनका यथोचित उत्तर तो अनुभव करने से ही मिल सकता है, शब्द द्वारा नहीं बताया जा सकता । गुड, शहद और शक्कर के मीठेपन में जो फर्क है वह क्या शब्दों से व्यक्त हो सकता है ? इसीलिये भी वस्तु अवक्तव्य है ।
चौथे भंग में, घट वक्तव्य होने पर भी किसी अपेक्षा से वह 'अवक्तव्य' भी बतलाया जाता है ।
इन चार भंगों पर से अवशिष्ट तीन भंग निष्पन्न होते है, और वे इस प्रकार है
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वस्तु कथंचित् अवक्तव्य होने पर भी दूसरी दृष्टि से कथंचित् वक्तव्य भी है– [ देखो १-२-३ भंग] अतः जब हम वस्तु की अवक्तव्यता के साथ उसकी वक्तव्यता भी किसी रूप में कहना चाहते हैं तब वक्तव्यरूप तीनों भंग (अस्ति, नास्ति और अस्ति नास्ति ) अवक्तव्य के साथ मिल जाते हैं ।
अवक्तव्य के साथ 'अस्ति' के मिलने पर 'अस्ति अवक्तव्य' नाम का पंचम भंग बनता है; अर्थात् घट अमुक अपेक्षा से 'अवक्तव्य' होने के साथ 'अस्ति है । यह हुआ पांचवाँ भंग ।
अवक्तव्य के साथ 'नास्ति' लगाने से 'नास्ति अवक्तव्य' नाम का छठा भंग बनता है; अर्थात् घट अमुक अपेक्षा से 'अवक्तव्य' होने के साथ 'नास्ति है । यह हुआ छठा भंग ।
अवक्तव्य के साथ 'अस्ति नास्ति' मिलने पर 'अस्ति नास्ति अवक्तव्य' नाम का सप्तम भंग बनता है; अर्थात् घट अमुक अपेक्षा से 'अवक्तव्य' होने के साथ 'अस्ति नास्ति' है । यह हुआ सातवाँ भंग ।
१. वस्तुगत अस्तित्व और नास्तित्व जैसे विरोधी धर्मयुगल मुख्यतः एकसाथ ( युगपत् ) नहीं कहे जा सकते, अतः वस्तु अवक्तव्य है— इस तरह चतुर्थ अवक्तव्य भंग न्यायग्रन्थों में बतलाया है ।
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