________________
३३८
जैनदर्शन हैं या 'ना' (नकारात्मक) कहते हैं । अतः इस हाँ और ना को लेकर सप्तभंगी
की योजना हुई है। उत्तर देने के जितने तरीके हैं उन्हें 'भंग' कहते हैं । ऐसे तरीके सात हो सकते हैं । अतः सात अंगों या प्रकारों के समूह को 'सप्तभंगी' कहते हैं । शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार कहना हो तो ऐसा कह सकते हैं कि प्रश्न के अनुरूप एक वस्तु में एक-एक धर्मविषयक विधि
और निषेध की विरोध रहित कल्पना सप्तभंगी है। प्रश्न सात प्रकार के हो सकते हैं । अतः सप्तभंगी कही गई है । सात प्रकार के प्रश्नों का कारण सात प्रकार की जिज्ञासा है, सात प्रकार की जिज्ञासा का कारण सात प्रकार का संशय है और सात प्रकार के संशय का कारण यह है कि उसके विषयभूत वस्तु के धर्म सात प्रकार के हैं ।
इस पर से ज्ञात होता है कि सप्तभंगी के सात भंग केवल शाब्दिक कल्पना ही नहीं है, परन्तु वस्तु के धर्म पर वे अवलम्बित हैं । अतः प्रत्येक भंग का स्वरूप वस्तु के धर्म के साथ सम्बद्ध है यह ख्याल में रखना चाहिए ।
सात भंग इस प्रकार हैं -
(१) अस्ति (है), (२) नास्ति (नहीं है), (३) अस्ति, नास्ति ( है, नहीं है), (४) अवक्तव्य (कहा नहीं जा सकता), (५) अस्ति, अवक्तव्य (६) नास्ति, अवक्तव्य और (७) अस्ति, नास्ति, अवक्तव्य । इन सात भंगों के साथ 'कथंचित् तो लगा ही है ।
शास्त्रीय पद्वति के अनुसार सात भंग इस प्रकार हैं :
प्रथम भंग-प्रथम भंग से वस्तु 'क्या है' यह बतलाया जाता है । वह इस प्रकार है
वस्तु अस्ति (भावात्मक) ही है, परन्तु कथंचित् अर्थात् अमुक अपेक्षा से, अर्थात् स्व-द्रव्य, स्व-क्षेत्र, स्व-काल और स्व-भाव से ।
द्वितीय भंग-दूसरे भंग से वस्तु 'क्या नहीं है' यह बतलाया जाता है । वह इस तरह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org