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________________ पंचम खण्ड ३२७ इसी प्रकार जड़ अथवा तत्त्व चेतन सिर्फ निविकार हो तो इन दोनों तत्त्वों के मिश्रणरूप जगत् में प्रतिक्षण मालूम होती रहती विविधता, रूपान्तरदशा कभी भी उत्पन्न नहीं होगी । इसीलिये परिणामी-नित्यतावाद को जैनदर्शन युक्तिसंगत मानता है । वस्तु का सदसद्वाद भी स्याद्वाद है । वस्तु 'सत्' कहलाती है वह किस कारण ? यह विचारना चाहिए । अपने ही गुणों से-अपने ही धर्मों से प्रत्येक वस्तु सत् हो सकती है, दूसरों के गुणों से नहीं । धनवान् अपने धन से धनी है, दूसरों के धन से नहीं । पिता अपने पुत्र की अपेक्षा से पिता है, दूसरों के पुत्र की अपेक्षा से नहीं । इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु अपने गुणों की अपेक्षा से-अपने धर्मों की अपेक्षा से सत् है, दूसरों के गुणधर्मों की अपेक्षा से नहीं । दूसरी वस्तु के गुणों से-धर्मों से (दूसरे के स्वरूप से) यदि वस्तु 'सत्' नहीं हो सकती तो फिर कैसी हो सकती है ? असत् । इस तरह अपेक्षादृष्टि से सत् को असत् भी समझा जा सकता है । लेखन अथवा वक्तृत्वशक्ति जिसके पास नहीं है वह ऐसा कहता है कि 'मैं लेखक नहीं हूँ' अथवा मैं वक्ता नहीं हूँ' अथवा कोई ऐसा कहता है कि मैं वक्ता तो हूँ, परन्तु लेखक नहीं हूँ।' ऐसे शब्द-प्रयोगों में 'मैं' भी कहा जाता है और साथ ही 'नहीं हूँ' भी कहा जाता है; अथवा 'मैं' अमुक हूँ' भी कहा जाता है और साथ ही 'मैं' अमुक नहीं हूँ' भी कहा जाता है । और यह युक्त ही है । क्योंकि 'मैं' स्वयं सत् होने पर भी मुझमें लेखन अथवा वक्तृत्वशक्ति न होने के कारण उस शक्तिरूप से 'मैं नहीं हूँ' अर्थात् 'मैं' लेखक अथवा वक्तारूप से नहीं हूँ'; अथवा मैं वक्ता हूँ', किन्तु मुझमें लेखनशक्ति न होने से उस शक्तिरूप से 'मैं नहीं हूँ' अर्थात् 'मैं लेखकरूप से नहीं हूँ' इस प्रकार के सर्वसुगम उदाहरणों से समझा जा सकता है कि सत् भी अपने में जो सत् नहीं है उसकी अपेक्षा से असत् भी हो सकता है । इस तरह भिन्न-भिन्न दृष्टिबन्दुओं की अपेक्षा से एक ही वस्तु में सत्त्व और असत्त्व का स्याद्वाद घट सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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