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________________ पंचम खण्ड ३२१ करते हैं । संसार के पदार्थ संसार में ही स्थूल अथवा सूक्ष्म रूप से इतस्ततः विचरण करते हैं । और उनके नए-नए रूपान्तर होते रहते हैं । दीपक बुझ गया इसका अर्थ यह नहीं समझने का कि दीपक का सर्वथा नाश हो गया । दीपक के परमाणुसमुह कायम है । जिस परमाणुसंघात से दीपक जला था वही परमाणुसंधात रूपान्तरित हो जाने से दीपक रूप से नहीं दीखता और इसीलिये अन्धकार का अनुभव होता है । सूर्य की गर्मी से पानी सूख जाता है, इससे पानी का अत्यन्त अभाव नहीं हो जाता । वह पानी रूपान्तर से बराबर कायम ही है । जब एक वस्तु के स्थूल रूप का नाश हो जाता है तब वह वस्तु सूक्ष्म अवस्था में अथवा अन्य रूप में परिणत हो जाती है, जिससे पहले देखे हुए उसके रूप में वह न दिखे यह सम्भव है । कोई मूल वस्तु नई उत्पन्न नहीं होती और किसी मूल वस्तु का सर्वथा नाश भी नहीं होता, यह अटल सिद्धान्त है । कहा है"नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ॥" -भगवद्गीता २, १६ अर्थात्-असत् की उत्पत्ति नहीं होती और सत् का नाश नहीं होता । उत्पत्ति और नाश पर्यायों का होता है। दूध का बना हुआ दहीं नया उत्पन्न नहीं हुआ है; दूध का ही परिणाम दहीं है । यह गोरस दूध रूप से नष्ट होकर दहीं रूप से उत्पन्न हुआ है, अतः ये दोनों गोरस ही है । इस प्रकार सर्वत्र समझ लेने का है कि मूल तत्त्व तो वैसे के वैसे ही रहते है और उनमें जो अनेकानेक परिवर्तन रूपान्तर होते रहते हैं अर्थात् १. पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोऽत्ति दधिव्रतः । अगोरसवतो नोभे तस्माद् वस्तु त्रयात्मकम् ॥६०॥ -श्री समन्तभद्राचार्य, आप्तमीमांसा । उत्पन्नं दधिभावेन नष्टं दुग्धतया पयः । गोरसत्वात् स्थिरं जानन् स्याद्वादद्विड् जनोऽपि कः ? । -उपाध्याय यशोविजययी, अध्यात्मोपनिषद्, १-४४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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