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पंचम खण्ड
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और अनित्यत्व आदि विरुद्ध दिखाई देनेवाले धर्म भी एक वस्तु में भिन्नभिन्न अपेक्षादृष्टि से विचार करने पर, यदि सम्भव और संगत प्रतीत होते हों तो उन्हें क्यों न स्वीकार किया जाय ?
हमें यह पहले जानना चाहिए कि 'घट' क्या वस्तु है ? एक ही मिट्टी में से घड़ा, कुंडा आदि अनेक पात्र बनते हैं । फिर भी घड़े को तोड़कर उसकी ही मिट्टी में से बनाए हुए कुंडे को कोई घड़ा कहेगा ? नहीं । क्यों नहीं ? मिट्टी तो वही है । परन्तु नहीं, आकार बदल जाने से उसे घड़ा नहीं कह सकते । अच्छा, तो फिर यही सिद्ध हुआ कि घड़ा मिट्टी का अमुक आकार विशेष (एक विशेष पर्याय ) है । परन्तु इसके साथ ही हमें ध्यान रखना चाहिए कि वह आकारविशेष मिट्टी से सर्वथा भिन्न भी नहीं है । उस आकार में परिवर्तित मिट्टी ही जब घड़ा, कुंडा इत्यादि नामों से व्यवहृत होती है तो फिर घड़े के आकार और मिट्टी इन दोनों को भिन्न कैसे माना जा सकता है ? इस पर से तो यही सिद्ध होता है कि घड़े का आकार और मिट्टी ये दोनों घड़े के स्वरूप है । अब इन दोनों स्वरूपों में विनाशी स्वरूप कौनसा है और ध्रुव स्वरूप कौनसा यह देखें । यह तो हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि घड़े का आकार ( पर्याय) विनाशी है । अतः घड़े का स्वरूप तो, जो कि घड़े का आकारविशेष है, विनाशी ठहरा । घड़े का दूसरा स्वरूप जो मिट्टी है वह कैसा है ? वह विनाशी नहीं है । क्योंकि मिट्टी के वे आकार-परिणामपर्याय बदला करते हैं, परन्तु मिट्टी तो वही की वही रहती है, यह हमारी अनुभवसिद्ध बात है । इस तरह घड़े का एक विनाशी और एक ध्रुव ऐसे दो स्वरूप देखे जा सकते हैं । इस पर से यही मानना पड़ेगा कि विनाशी स्वरूप से घड़ा अनित्य है और ध्रुव स्वरूप से घड़ा नित्य है । इस प्रकार एक ही वस्तु में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से नित्यभाव और अनित्यभाव के दर्शन को अनेकादर्शन कहते हैं ।
विशेष स्पष्टता के लिये इस पर कुछ अधिक दृष्टिपात करें । सब पदार्थों में उत्पत्ति, स्थिति और विनाश लगे हुए हैं । दृष्टान्त के तौर पर सोने
१. 'उत्पाद-व्यय- ध्रौव्ययुक्तं सत्' - तत्त्वार्थसूत्र ५, २९.
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