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पंचम खण्ड
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स्थानाङ्गसूत्र के ४थे स्थान के ३रे उद्देश में उपर्युक्त चार प्रमाणों का उल्लेख है, किन्तु इसी सूत्र के दूसरे स्थान के प्रथम उद्देश में प्रत्यक्ष और परोक्ष इन दो प्रमाणों का भी उल्लेख है जो नन्दीसूत्र में तो है ही । भगवतीसूत्र (शतक ५, उद्देश ३) में उक्त चार प्रमाणों का उल्लेख अनुयोगद्वार की गवाही देकर किया गया है। 'सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष' ऐसा प्रत्यक्ष का विशिष्ट प्रकार सबसे पहले श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के विशेषावश्यकभाष्य में देखा जाता है, परन्तु वह नन्दीसूत्र के आधार पर किया गया मालूम होता है; क्योंकि नन्दीसूत्र में इन्द्रियसापेक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों में रखा है। इन सब पर से यही निष्कर्ष निकलता है कि ज्ञानपँचक की विवेचना आगमकाल की विवेचना है और प्रत्यक्षादिरूप से प्रमाणविभाग की विवेचना बाद के तार्किक युग के संस्कारवाली विवेचना है । आगमों की संकलना* के समय प्रमाणद्वय और प्रमाणचतुष्टयवाले दोनों विभाग, ऊपर कहा उस तरह स्थानांग एवं भगवतीसूत्र में प्रविष्ट हो गए । फिर भी जैनाचार्यों का खास झुकाव तो प्रमाणद्वय के विभाग की ओर ही रहा है । इसका कारण यह है कि प्रमाणचतुष्ट्यवाला विभाग वस्तुतः न्यायदर्शन का ही है । इसीलिये उमास्वाति ने तत्त्वार्थभाष्य [१, ६] में उसे 'नयवादान्तरेण' कहा है, जबकि प्रमाणद्वयवाला विभाग तो जैनाचार्यों का स्वोपज्ञ है और तत्त्वार्थसूत्र आदि में गृहीत होकर यह जैन-प्रक्रिया में प्रतिष्ठित हुआ है । यही विभाग नन्दीसूत्र में है, किन्तु नन्दी की विशेषता यह है कि उसने प्रत्यक्ष प्रमाण में उसके एक विभागरूप अवधि आदि नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष के अतिरिक्त इन्द्रियप्रत्यक्ष को भी लिया है। परन्तु उसने वह लिया है अपने पूर्ववर्ती 'अनुयोगद्वार' सूत्र के आधार पर । क्योंकि अनुयोगद्वार सूत्र में प्रत्यक्ष-अनुमान-उपमान-आगम इन चार प्रमाणों का निर्देश करके प्रत्यक्ष प्रमाण के इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष ऐसे दो भेद बतलाए हैं । इसी (अनुयोगद्वार तथा नन्दी) के आधार पर इन्द्रियजन्य ज्ञान को, जिसे लोग प्रत्यक्ष कहते हैं और मानते हैं, 'सांव्यवहारिक' प्रत्यक्ष नाम देनेवाले सबसे पहले जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण है । उन्होंने ऐसा करके उक्त सूत्रों का संवाद भी स्थापित किया है और लोकमत का संग्रह भी किया है । इसके बाद अकलंकदेव ने इसी प्रकार प्रत्यक्ष प्रमाण के इन दो भेदों को प्रतिष्ठित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने परोक्ष प्रमाण का स्मृति-प्रत्यभगवतीसूत्र में उसके बहुत पीछे के बने हुए सूत्र रायपसेणइअ, उववाइअ, पनवणा, नन्दी, जीवाभिगम और अनुयोगद्वार के नाम लेकर उनकी गवाही जो दी गई है वह आगमों की संकलना के समय की योजना है।
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