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पंचम खण्ड
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जाता है उसे 'परार्थानुमान' कहते हैं । प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन—ये पाँच प्रकार के शब्दप्रयोग प्रायः परार्थानुमान में किए जाते हैं । 'यह प्रदेश अग्निवाला है' यह 'प्रतिज्ञा' वाक्य है । 'क्योंकि धूम दिखाई देता है' यह 'हेतु' वाक्य है । व्याप्तिपूर्वक रसोईघर का दृष्टान्त देना 'उदाहरण' वाक्य है । 'उस तरह यहाँ भी धूम दिखाई दे रहा है' इस प्रकार उपनय का अवतरण 'उपनय' वाक्य है । और अन्त में 'अतः यहाँ पर अग्नि अवश्य है' ऐसा निर्णय करना 'निगमन' वाक्य है । इस तरह की अनुमानप्रणाली होती है । साथ का
जो हेतु मिथ्या हो अर्थात् जिसमें साध्य के अविनाभावसम्बन्ध घटित न होता हो उसे 'हेत्वाभास' कहते हैं निर्णयात्मक अनुमान करने में मिथ्या प्रमाणित होता है ।
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। हेत्वाभाव
आगम :
आप्त (प्रामाणिक) मनुष्य के वचनादि से जो ज्ञान होता है वह 'आगम' अथवा 'शब्द' प्रमाण कहा जाता है ।
जो प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों से विरुद्ध न हो, जो आत्मविकास और उसके मार्ग पर सच्चा प्रकाश डालता हो ऐसा जो शुद्ध तत्त्वप्ररुपक वचन होता है वही वस्तुतः 'आगम' शास्त्र है ।
सद्बुद्धि से यथार्थ उपदेश देनेवाले को आप्त कहते हैं । ऐसे 'आप्त के कथन को 'आगम' कहते हैं । सर्वोत्कृष्ट आप्त तो वह है जिसके रागद्वेष आदि दोष क्षीण हो गए हैं और जिसने अपने पूर्ण निर्मल ज्ञान से उच्च और पवित्र उपदेश दिया है ।
आगम - शास्त्र में प्रकाशित गम्भीर तत्त्वज्ञान पर मध्यस्थ एवं सूक्ष्म बुद्धि से विचार न किया जाय तो अर्थ का अनर्थ होने की पूर्ण सम्भावना रहती है । दुराग्रह का त्याग, मध्यस्थवृत्ति, स्थिर सूक्ष्म दृष्टि तथा शुद्ध जिज्ञासाभाव - इतने साधन प्राप्त हुए हों तो आगमिक तत्त्वों की गहराई में भी निर्भिकता से सफलतापूर्वक विचरण किया जा सकता है ।
कभी-कभी ऊपर-ऊपर से विचार करने पर बहुत से महर्षियों के
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