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________________ पंचम खण्ड ३१३ सकेगी और ऐसा होने पर धूम की अपेक्षावाला अग्नि की जो खोज अवश्य करता है वह नहीं करेगा ।' इस प्रकार तर्क-व्यापार से इन दोनों की व्याप्ति निश्चित होती है, और व्याप्ति के ज्ञान से अनुमान का निर्माण होता है । धूमगत उस व्याप्ति-नियम का जब तक ज्ञान न हो तबतक धूम देखने पर भी अग्नि का अनुमान नहीं हो सकता यह स्पष्ट है । जिस मनुष्य को धूमगत उस व्याप्तिनियम का ज्ञान है वह धूम देख कर उस स्थान पर अग्नि का अनुमान कर सकता है । इस पर से स्पष्ट होता है कि अनुमान के लिये व्याप्तिनिश्चय की आवश्यकता है और व्याप्तिनिश्चय तर्काधीन है । साधनात् साध्यज्ञानमनुमानम्-अर्थात् साधन से-हेतु से साध्य के (परोक्ष साध्य के) ज्ञान होने को अनुमान कहते हैं । मतलब कि साधन की उपलब्धि होने पर तथा साध्य के साथ की साधनगत व्याप्ति का स्मरण होने पर साध्य का अनुमान होता है । दृष्टान्त के तौर पर, जिसने धूम और अग्नि का विशिष्ट सम्बन्ध जान लिया है अर्थात् अग्नि के साथ की व्याति धूम में है यह जो समझा है वह मनुष्य किसी स्थान पर धूम देखकर और तद्गत(धूमगत) व्याप्ति का(अग्नि के साथ की व्याप्ति का) स्मरण करके उस स्थान पर अग्नि होने का अनुमान करता है। इस तरह, अनुमान होने में साधन की (हेतु की) उपलब्धि और साधन में रही हुई साध्य के साथ की व्याप्ति का स्मरण ये दोनो अपेक्षित है । यहाँ पर अनुमानप्रयोग के थोड़े उदाहरण भी देख लें । (१) अमुक प्रदेश अग्निवाला हैं, धम होने से (२) शब्द अनित्य है, उत्पन्न होने से । (३) यह वृक्ष है, नीम होने से, (४) रोहिणी का उदय होगा, कृत्तिका का उदय हुआ है इसलिये (५) भरणी का उदय हो चुका है, कृत्तिका का उदय होने से । (६) अमुक फल रूपवान् है, रसवान् होने से; अथवा रसवान् है, रूपवान् होने से । इनमें पहला हेतु कार्यरूप है, क्योंकि धूम अग्नि का कार्य है । दूसरा और तीसरा स्वभावरूप है । चौथा हेतु पूर्वचर है, क्योंकि कृत्तिका नक्षत्र रोहिणि का पूर्ववर्ती है । पाँचवाँ उत्तरचर है, क्योंकि कृत्तिका भरणी से उत्तरवर्ती है । और छठा सहचर हेतु है, क्योंकि रूप और रस का साहचर्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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