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________________ जैनदर्शन ३१२ साध्य के न होने पर साधन का अवश्य न होना । अग्नि होने पर धूम का होना ( अर्थात् धूम होने पर अग्नि का अवश्य होना) — यह हुआ धूम में अन्वय, और अग्नि न होने पर ही धूम होता ही नहीं यह हुआ धूम में व्यतिरेक । इस प्रकार अग्नि की तरफ का अन्वय और व्यतिरेक दोनों धूम में होने से धूम में अग्नि की तरफ की व्याप्ति रही हुई समझी जा सकती है, क्योंकि धूम अग्नि का पूर्णरूप से अनुगामी है धूम अग्नि से व्याप्य है, परन्तु अग्नि धूम से व्याप्य नहीं है; क्योंकि जहाँ धूम होता है वहाँ पर निरपवादरूप से अग्नि होती ही है, परन्तु जहाँ अग्नि होती है वहाँ सर्वत्र धूम हो ही ऐसा नहीं है । धूम वहाँ पर हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता । अतः धूम से अग्नि का अनुमान हो सकता है, परन्तु अग्नि से धूम का अनुमान नहीं हो सकता । जहाँ साध्य और साधन दोनों एक-दूसरे को समानरूप से व्याप्त होकर रहते हों वहाँ की व्याप्ति समव्याप्ति कहलाती है । जैसे कि रूप से रस का और रस से रूप का अनुमान किया जा सकता है । उपर्युक्त व्याप्ति का निर्णय तर्क द्वारा होता है । उदाहरणार्थ, धूम अग्नि के बिना नहीं होता, जहाँ-जहाँ धूम है वहाँ वहाँ सर्वत्र अग्नि है, ऐसा कोई धूमवान् प्रदेश नहीं है जहाँ अग्नि न हो - इस प्रकार का धूम का अग्नि के साथ का नियत साहचर्य, जिसे व्याप्ति कहते हैं, तर्क द्वारा सिद्ध होता है । दो वस्तुएँ अनेक स्थानों पर साथ ही दिखाई दें अथवा क्रमभावी दिखाई दें इससे उनका परस्पर व्याप्तिनियम ( सहभाव अथवा क्रमभावरूप अविनाभाव सम्बन्ध) सिद्ध नहीं हो सकता । किन्तु इन दोनों को अलग होने में अथवा नियतरूप से क्रमभावी न मानने में क्या विरोध है ? इसका पर्यालोचन करने पर विरोध सिद्ध होता हो तो - अर्थात् उक्त प्रकार का सम्बन्ध निःशंक एवं निरपवाद प्रतीत होता हो तभी इन दोनों का व्याप्तिनियम सिद्ध हो सकता है । इस तरह इस नियम की परीक्षा करने का जो अध्यवसाय है उसे तर्क कहते हैं । जैसे कि, धूम तथा अग्नि के बारे में ऐसा तर्क किया जा सकता है कि 'यदि अग्नि के बिना भी धूम होता हो तो वह अग्नि का कार्य नहीं हो सकेगा, अतः इन दोनों की जो पारस्परिक कार्यकारणता है वह टिक नहीं - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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