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जैनदर्शन
उस जन्म में इच्छा प्रवृत्ति द्वारा जिन कर्म-संस्कारों का संयम हुआ हो उन्हीं के आधार पर वर्तमान जन्म और तद्गत विशेषताओं का खुलासा हो सकता है । जिस युक्ति से पहले का एक जन्म सिद्ध हुआ उसी युक्ति के बल पर उससे आगे का और उससे भी आगे का इस प्रकार अनेक [अनन्त] जन्म सिद्ध हो सकते हैं । और इसी तरह आत्मा का [मोहावृत आत्मा का] भावि जन्म भी सिद्ध हो सकता है।
जन्म लेते ही अशिक्षित बालक स्तनपान में स्वयं प्रवृत्त होता है । इस पर से पूर्वभव के चैतन्य की अनुवृत्ति का अनुमान शक्य बतलाया गया
पूर्वजन्म यदि हो तो वह याद क्यों नहीं आता ?- ऐसा प्रश्न प्रायः किया जाता है । परन्तु इस पर पूछ जा सकता है कि इस जीवन में बनी हुई सब घटनाएँ क्या हमें याद आती है ? नहीं । बहुत सी बातें हम भूल जाते हैं । अरे, सुबह का खाया हुआ शाम को याद नहीं रहता ! तो फिर पूर्वजन्म की बात ही क्या करना ? जन्मक्रान्ति, शरीरक्रान्ति और इन्द्रियक्रान्ति- इस प्रकार समूची जिन्दगी ही जहाँ बदल जाती हो वहाँ पर फिर पूर्वजन्म का स्मरण कैसे शक्य है ? फिर भी किसी-किसी महानुभाव को आज भी पूर्वजन्म का स्मरण हो आता है। प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में ऐसी अनेक घटनाओं का ब्योरेवार वर्णन प्रकट भी हुआ है । जातिस्मरण की ये घटनाएँ मनुष्यको को पुनर्जन्म के बारे में विचार करने के लिये प्रेरित करती हैं ।
पुनर्जन्म मानने पर ही मनुष्य के कृत्यों का उत्तरदायित्व सुरक्षित रहता है । सुजन महानुभाव पर भी कभी घोर आपत्ति आती है और अपराध के बिना भी दण्ड भुगतना पड़ता है । परन्तु उस समय उसकी मानसिक शांति में पुनर्जन्म का सिद्धांत बहुत उपकारक होता है । वर्तमान जीवन की सत्कृतियों का अनुसन्धान यदि आगे न हो तो मनुष्य हताश हो जाय, विपत्ति के समय उसके चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई दे !
हमारे अपने जीवन में 'अकस्मात्' घटनाएँ कुछ कम नहीं घटतीं । उन्हें अकस्मात् (अ-कस्मात् अर्थात् किसी सचेतन के बुद्धिपूर्वक प्रयत्न का
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