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जैनदर्शन
एक ही माता-पिता के सन्तानों में अंतर दिखाई देता है । इतना ही नहीं, एक साथ जन्मे हुए युगल में भी अंतर दिखाई देता है । माता-पिता आदि की ठीक-ठीक देखभाल होने पर भी उनके शिक्षण, संस्कार, बुद्धि, अनुभव, व्यवहार आदि में फर्क मालूम होता है । यह फर्क रज- वीर्य और वातावरण की विभिन्नता के कारण है, ऐसा कहना पर्याप्त नहीं है । पूर्वजन्म के संस्कारों के परिणाम को भी वहाँ स्थान है, ऐसा मानना युक्त मालूम होता है । ऐहिक कारण अवश्य अपना प्रभाव डालते हैं, परन्तु इतने से ही विचारणा नहीं रुक जाती । इन कारणों के पीछे भी किसी न किसी निगूढ हेतु का संचार होना चाहिए ऐसी कल्पना होती है । अतः मूल कारणों की खोज के लिये वर्तमान जीवन की परिस्थिति से आगे बढ़ना पड़ेगा ।
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संसार में ऐसे भी मनुष्य दिखाई देते हैं जो अनीति, अनाचार के कार्य करने पर भी धनी और सुखी हैं, जबकि नीति और धर्म के मार्ग पर चलनेवालों में कुछ लोग दरिद्र एवं दुःखी दिखाई पड़ते हैं । ऐसा होने का क्या कारण है ? जैसा कार्य वैसा फल कहाँ रहा ? इसका खुलासा वर्तमान जन्म के साथ पूर्वजन्म के अनुसन्धान का विचार करने पर हो सकता है । पूर्वजन्म के कर्म - संस्कार के अनुसार वर्तमान जीवन का निर्माण होता है और विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं । इसी तरह वर्तमान जीवन के अनुसार भावी जीवन की निष्पत्ति होती है; अर्थात् पूर्वजन्म के कर्म - संस्कारों का परिणाम वर्तमान जीवन में प्रकट होता है और वर्तमान जीवन के कर्म-संस्कारों का परिणाम भावि जीवन में प्रकट होता है । क्या ऐसा नहीं होता है कि कितने ही बदमाश, डाकू, और खूनी और अपराध करने के बाद इस तरह छुप जाते हैं कि वे अपने अपराध के दण्ड से बच जाते हैं, जबकि दूसरे निरपराधियों को अपराध न करने पर भी अपराध का भयङ्कर दण्ड सहन करना पड़ता है ? यह कितना अन्याय है ? ' जैसा बोओगे वैसा काटोगे' का नियम कहाँ रहा ? परन्तु यह सब गुत्थी पुनर्जन्म अथवा पूर्वजन्म के सिद्धान्त के आगे सुलझ जाती है । पूर्वजन्म में किए हुए विभिन्न और विचित्र कर्मों के विभिन्न और विचित्र परिणाम वर्तमान जन्म में उपस्थित होते हैं ।
परन्तु इस पर से ऐसा समझने का नहीं है कि अनीति, अन्याय
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