________________
२७
१६४ १६७
५. शरीर का उपयोग
१५५ ६.अनुकम्पा और दान
१५७ ७.मैत्री आदि चार भावनाएँ
१५८-१६३ १. मैत्री भावना १६०
३. करुणा भावना १६२ २. प्रमोद भावना १६०
४. माध्यस्थ्य भावना १६२ ८.विश्वप्रेम और मनशुद्धि ९.अन्तर्युद्ध १०. राग और वीतरागता
१६८ ११. ईश्वरकृपा
१७१ १२. अनशनव्रत लिए हुए व्यक्ति के बारे में
१७४ १३. व्यापक हितभावना
१७५ १४. सरल मार्ग
१७६ १५. आत्मा के स्वरूप का शास्त्रीय विवेचन
१७६-२०४ -दो प्रकार का उपयोग : विशेष और सामान्य
१७७ --विशेष उपयोग अर्थात् ज्ञान के पाँच भेद
१७९ -मतिज्ञान के चार भेद : अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा १७९ -चार प्रकार की बुद्धि : औत्पत्तिकी; वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी
१८० -सामान्य उपयोग अर्थात् दर्शन के चार भेद
१८७ -औपशमिक भाव –क्षायिक भाव –क्षायोपशमिक भाव
१९२ -औदयिक भाव
१९३ -----पारिणामिक भाव
१९४ १६. लेश्या
२०५ १७. कार्यकारणसम्बध
२१० १८.नियतिवाद १९. जाति-कुलमद २०.ज्ञान-भक्ति-कर्म
१९१
२२८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org