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________________ २४६ जैनदर्शन 1 उसकी उतनी महत्ता नहीं है, परन्तु जो समझ के साथ बुद्धिपूर्वक जैन, बौद्ध अथवा वैष्णव है अर्थात् जैनत्व, बौद्धत्व अथवा वैष्णवत्व के उच्च एवं विशुद्ध आदर्श पर जो जैन, बौद्ध अथवा वैष्णव है वही सच्चा जैन, बौद्ध अथवा वैष्णव है । क्योंकि जो बुद्धिपूर्वक सन्मार्ग की दीक्षा ग्रहण करता है वह उस मार्ग की परम्परा में कूडा करकट — जैसा जो कुछ जमा होता है उसे दूर करने का विवेक भी दिखला सकता है । ऐसे विवेक से वह असत् तत्त्व को दूर करके अपने जीवन-विकास की साधना के साथ ही साथ सामान्य जनता के सम्मुख भी एक स्वच्छ ज्ञानमार्ग प्रस्तुत करता है । जैन, बौद्ध, वैष्णव आदि यदि संकुचित मनोवृत्ति के हों तो एकदूसरे से अलग भिन्न-भिन्न मार्गगामी बनते हैं, परन्तु यदि विवेकदृष्टिसम्पन्न और सच्ची कल्याणकामनावाले हों तो भिन्न-भिन्न साम्प्रदायिक नाम रखते हुए भी वे वस्तुतः एक ही कल्याणमार्ग पर विचरनेवाले पथिक हैं ऐसे समभावी, शुद्ध जिज्ञासु, गुणपूजक सज्जन वस्तुतः एक ही मार्ग के सहप्रवासी हैं 'वैष्णव जन तो तेने कहीए जे पीड पराई जाणे रे' इस सुप्रसिद्ध भजन में बतलाए हुए नैतिक सद्गुण जिस प्रकार वैष्णव होने के लिये आवश्यक हैं उसी प्रकार बौद्ध अथवा जैन बनने के लिये भी आवश्यक हैं । इस सद्गुणों को धारण करना ही यदि वैष्णवत्व, बौद्धत्व अथवा जैनत्व हो तो वैष्णवत्व, बौद्धत्व अथवा जैनत्व कोई जुदी वस्तु नहीं रह जाती, किन्तु वह एक ही वस्तु बन जाती है: क्योंकि जिस प्रकार जल, पानी, वारि, वोटर नीर आदि शब्दों का एक ही अर्थ है, अतः जल, पानी, वारि, वोटर, नीर एक ही है, उसी प्रकार वैष्णवत्व, जैनत्व, बौद्धत्व इन सबका एक ही अर्थ है, ( और वह है उन गुणों को धारण करना), अतः जैन, बौद्ध, वैष्णव एक हीं हैं । [वैष्णव, जैन, बौद्धों की भाँति अन्य सम्प्रदायानुयायी धार्मिक भी समाविष्ट है ।] 1 1 १. इन शब्दों के शब्दार्थ का भी एक ही तात्पर्य है । इन्द्रियविजय का अभ्यास करनेवाला जैन, सद्बुद्धि के मार्ग पर विचरण करनेवाला बौद्ध और आत्ममैत्री द्वारा विश्व के समग्र प्राणियों के साथ जो व्याप्त [ सम्मिलित ] होकर रहे वह वैष्णव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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