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________________ तृतीय खण्ड २३५ (२१) श्रद्धा : किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिये तीन बातों की आवश्यकता है : श्रद्धा, ज्ञान और क्रिया' । इन तीनों को जैनदर्शन में क्रमश: सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र कहते हैं । ये तीन कार्यसिद्धि अथवा मोक्ष का मार्ग है । ये तीन मार्ग के भेद नहीं हैं, किन्तु मार्ग के अवयवअंश हैं । ये तीनों मिलकर एक मार्ग होता है । श्रद्धा का अर्थ है विवेकपूर्वक दृढ विश्वास । जानने को ज्ञान और तदनुसार आचरण को चारित्र कहते हैं ।। औषध की रोगविदारक शक्ति में भरोसा हो, उसका ज्ञान हो और उसका यथायोग्य सेवन किया जाय तो रोग दूर हो सकता है । इसी प्रकार दुःख से मुक्त होने के लिये अथवा सुख या मोक्ष प्राप्त करने के लिये उसके मार्ग के बारे में श्रद्धा, उसका ज्ञान और उस पर चलना(आचरण) आवश्यक है। इन तीनों के एकत्रित होने पर ही दुःख से मुक्ति अथवा सुख या मोक्ष प्राप्त हो सकता है । कहने का अभिप्राय यह है कि इष्टसिद्धि का साधनभूत उपाय अथवा मार्ग का सच्चा ज्ञान चाहिए, उसमें श्रद्धा चाहिए तथा उस साधनभूत उपाय के यथायोग्य प्रयोग करनेरूप अथवा उस मार्ग पर चलनेरूप आचरण होना चाहिए । ऊपर औषध का उदाहरण दिया है । उसके बारे में कोई ऐसा कह १. "The unity of heart, head and hand leads to liberation." अर्थात्---हृदय (जो श्रद्धा का प्रतीक है), मस्तिष्क (जो ज्ञान का प्रतीक है) और हाथ (जो क्रिया-प्रवृत्ति का प्रतीक है) इन तीनों के सुभग संयोग से मुक्ति मिलती है। यह अंग्रेजी वाक्य भी दर्शन [श्रद्धा], ज्ञान तथा चारित्र [आचरण] इन तीन के सहयोग से ही मुक्ति मिलती है इस आर्ष उपदेश को अथवा 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इस महर्षि उमास्वातिप्रणीत तत्त्वार्थसूत्र के आद्य सूत्र की बात को ही प्रकट करता है। महात्मा गाँधी के अन्यतम शिष्य सन्त विनोबा भावे का सूत्र है : श्रद्धा + प्रज्ञा + वीर्य -सत्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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