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________________ २२२ जैनदर्शन धारण करता है । पुद्गल में जिस पौद्गलिक परिणाम की निकट--योग्यता होती है वह तदनुकूल निमित्त के संयोग से प्रकट होता है । रेती में काँच बनने की, कोयले में हीरा बनने की योग्यता (निकट-योग्यता) होने से प्रयत्न करने पर उनमें से वे प्रकट होते हैं । अशुचिरूप खाद को निमित्तयोग मिलता है तब वह कैसा रूप धारण करती है ! प्रयोगविशेष से विष अमत बनता है और अमृत विष । इस प्रकार अनेकानेक परिणामों में परिवर्तित होने की योग्यता द्रव्य में होने पर भी जैसा निमित्त मिलता है उसके अनुरूप परिणाम में वह द्रव्य परिवर्तित हो जाता है । मूर्ख लड़के पर सुयोग्य परिश्रम करने पर उसकी बुद्धि तथा ज्ञान का विकास हो सकता है । विष में अमृतत्त्व और अमृत में विषत्व योग्यता रूप से था ही, मूर्ख लड़के में गुप्त रूप से ज्ञान था ही, और वह कारणसमवधान से बाहर आया । इस प्रकार द्रव्य मेंउपादान में जो होता है अर्थात् जिस प्रकटनीय पर्याय की योग्यता होती है वह निमित्त मिलने पर बाहर आता है और जो न हो वह बाहर नहीं आता । रेती पुद्गल है और तेल भी पुद्गल है, परन्तु रेती में से तेल नहीं निकलता जिसमें जिस पर्यायकी प्रकट अथवा निकट योग्यता नहीं होती उसमें से वह पर्याय उत्पन्न नहीं हो सकता । रेती के परमाणु जब विशिष्ट प्रकार के स्कन्ध बनें तभी उनमें से तेल निकल सकता है । द्रव्य में बहुत बहुत प्रकट होने की शक्यता अर्थात् प्रकटनीय अनेक पर्यायों के प्रादुर्भाव की सम्भावना है, फिर भी जिस परिणाम अथवा पर्याय के लिये निमित्त का योग मिलता है, वही प्रकट होता है । इस प्रकार द्रव्यनिष्ठ शक्तियाँ नियत है, परन्तु उन शक्तियाँ में से कौनसी कब प्रकट होगी यह नियत नहीं है । जिसके लिये निमित्त मिलेगा वह प्रकट होगी और जैसा निमित्त मिलेगा उसके अनुसार कार्य प्रकट होगा। सब कुछ नियत हो-पहले से ही निश्चितरूप से ठहरा हुआ हो तो प्रयत्न-क्रिया की कोई अपेक्षा ही नहीं रहने की और हिंसा-अहिंसा, पुण्यपाप सब खत्म हो जायगा । किसी मनुष्य को छुरा भोंक कर हत्या करनेवाले को हिंसा अथवा पाप नहीं लगेगा, क्योंकि हत्या करनेवाले का एसा भाव होने का ही था, मरनेवाले का इस प्रकार मरना निश्चित ही था, मरनेवाले के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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