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________________ तृतीय खण्ड आचार्य सिद्धसेन सन्मतितर्क में कहते हैं— काली सहाव नियई पुव्वकय पुरिस कारणगंता । मिच्छत्तं ते चेव य समासओ होन्ति सम्मत्तं ॥ ३५३॥ अर्थात्-काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकर्म और ऊद्यम इनमें से किसी एक का एकान्त पक्षपात करने में मिथ्यात्व है और इन पाँचों का योग्यरूप से स्वीकार करने में सम्यक्त्व है । प्रस्तुत विषय में थोडा और विचार करें । सब द्रव्यों की अपनी मूल शक्तियाँ नियत हैं । जड़ द्रव्य चेतनरूप से और चेतन द्रव्य जड़रूप से परिणत नहीं होता । पुद्गल में पुद्गलसम्बन्धी परिणाम और जीव में जीवसम्बन्धी परिणाम यथासमय होते रहते हैं । द्रव्यमात्र की भिन्न-भिन्न परिणामधारा प्रतिसमय अविच्छिन्नभाव से बहती रहती है । अर्थात् प्रत्येक द्रव्य भिन्न-भिन्न पर्याय में प्रतिसमय परिणत हुआ करता है परन्तु द्रव्यमें अमुक समय पर अमुक ही परिणमन- अमुक ही पर्याय हो ऐसा नियत नहीं है । मिट्टी के पिण्ड में घड़ा, कुंडा, गगरी आदि अनेक पर्यायों को प्रकट करने की योग्यता है, परन्तु इनमें से जिसके लिये निमित्तयोग मिले उसी का उद्भव होता है । जिस समय मिट्टी के पिण्ड में से घड़ा बना उस समय ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उस पिण्ड में से घड़ा बनना नियत ही था । जिस प्रकार घड़े का निमित्त मिला घड़ा बना उसी प्रकार यदि गगरी का निमित्त मिला होता तो गगरी बनती । जिस पात्र का निमित्तयोग मिलता वह पात्र बनता । इस प्रकार कार्यकारणसम्बन्ध का बल निश्चित है । जैसीजैसी अविकल कारणसामग्री उपस्थित होती है वैसा-वैसा कार्य या परिणाम होता है । मनुष्य प्रयत्न के योग से कार्य बनता है और नैसर्गिक कारणसंयोग से भी कार्य बनता है । द्रव्य के परिणमन उपस्थित परिस्थिति या निमित्त के अनुसार होते हैं । पुद्गलपरमाणु घट बन जाते हैं, परन्तु वे सीधे तौर से नहीं बन सकते । जब पुद्गलपरमाणुओं को अनुकूल सामग्री मिलती है तब स्कन्ध बन कर वे मिट्टा के पिण्ड में परिवर्तित होते हैं और पीछे जब उस पिण्ड को घड़े में परिवर्तित करनेवाले साधन मिलते हैं तब वह घटका रूप Jain Education International २२१ For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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