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________________ २२० जैनदर्शन ये बरतन फोड डाले अथवा तुम्हारे पत्नी पर कोई बलात्कार करे तो सच कहो, सद्दालपुत्त ! इन कुकृत्यों का उत्तरदायित्व उस मनुष्यो पर डालोगे या उस पर न डाल कर नियति पर डालोगे और नियति पर डाल कर शान्त रहोगे ?" सद्दालपुत्त ने कहा, "उस समय मैं शान्त नहीं रह सकूँगा, भगवन् ! उस समय मनुष्य को बराबर पीटूंगा ।" महावीर ने कहा, "इसका अर्थ तो यह हुआ कि तुम उस मनुष्य को उसके कार्यों का उत्तरदायी मानते हो, परन्तु जब प्रत्येक कार्य नियतिबद्ध है, तो फिर उस मनुष्य को उसके कार्यों का उत्तरदायी क्यों मानना चाहिए ? क्या नियतिवाद का यह अर्थ है कि मनुष्य अपने पापों को नियतिवाद के नाम के नीचे ढंक दे और दूसरों के पापों का बदला लेने के लिये नियतिवाद को एक ओर हट दे ? सद्दालपुत्त, नियतिवाद के आधार पर क्या प्रगति हो सकेगी ? क्या जगत् की व्यवस्था बन सकेगी ?" श्री महावीर के समझाने से भद्रात्मा सद्दालपुत्त की आँखे खुल गईं । वह बोला, "मैं समझ गया, प्रभो ! कि नियतिवाद एक प्रकार का जड़ता का मार्ग है, दम्भ है, अपने पापमय और पतनमय जीवन के उत्तरदायित्व से बचने के लिये एक ओट है । यह तो बहुत बड़ी आत्मवंचना और परवंचना है, भगवान् ।" प्रभुने कहा, "आत्मवंना से अपनी आँखों में धूल डाली जा सकती है, सद्दालपुत्त ! और परवंचना से दूसरों की आँखों में धूल झोंकी जा सकती है, परन्तु जगत् की कार्यकारण की व्यवस्था की दृष्टि में धूल नहीं झोंकी जा सकती ।" नियतिवाद को भी स्थान है ही । विरोध केवल उसी एक को सर्वेसर्वा मानकर दूसरे कारणों को उडा देने के सामने है। किसी भी कार्य में काल, स्वभाव, उद्यम, पूर्वकर्म, नियति ये सब अपनी-अपनी योग्यतानुसार गौणमुख्य भाव से भाग लेते हैं । अतः इन सब कारणों का उनके स्थान एवं विशिष्टता के अनुसार स्वीकार करने में ही न्यायसिद्धता है । १. पाठक इस विषय का निरूपण पँचम खण्ड के 'स्याद्वाद' प्रकरण के अन्त में देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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