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________________ तृतीय खण्ड १९७ कर्मों का और उपशम केवल मोहनीय कर्म का ही होता है । (क्योंकि घाती कर्म के क्षयोपशम से (उसकी मात्रा के अनुसार) गुण प्रकट होते हैं । अघाती कर्म किसी गुण को दबाता नहीं, अतः उसका क्षयोपशम नहीं होता । ) आठ प्रकार के कर्मों में से प्रत्येक कर्म के उदय से होने वाले परिणाम के बारे में पहले उल्लेख किया जा चुका है। अब उपशम और क्षयोपशम को देखें । भस्माच्छादित अग्नि की भाँति कर्म की सर्वथा (निश्चित समय तक) अनुदयावस्था [प्रदेश से भी उदय का अभाव] को उपशम कहते हैं । मोहनीय कर्म के दो भेदों में से दर्शनमोह के उपशम से औपशमिक सम्यक्त्व और चारित्रमोह के उपशम से औपशमिक चारित्र प्राप्त होता है । घाती कर्मों में से ज्ञानावरण और दर्शनावरण के क्षयोपशम' से सत् या १. क्षयोपशम शब्द में क्षय और उपशम ये दो शब्द हैं । 'क्षय' अर्थात् उदयप्राप्त कर्मदलिकों का क्षय तो सब प्रकार के क्षयोपशम में होता ही है, परन्तु (क्षयोपशम के सम्बद्ध) उपशम दो प्रकार का होता है । एक तो मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायरूप सर्वघाती* प्रकृतियों के क्षयोपशम के समय का और दूसरा मतिज्ञानावरण आदि ★ अनन्तानुबन्धी चार कषाय सम्यक्त्व का, अप्रत्याख्यानावरण चार कषाय देशविरति का और प्रत्याख्यानावरण चार कषाय सर्वविरति का सर्वथा घात करते हैं । इसी तरह मिथ्यात्व सम्यक्त्व का सर्वथा घात करता है । अतः ये बारह कषाय और मिथ्यात्व सर्वघाती हैं । चार संज्वलन कषाय चारित्रलब्धि का देश से (अंशतः) घात करते हैं, अतः वे देशघाती हैं । केवलज्ञान-दर्शनावरण सर्वघाती है, परन्तु उनका क्षय ही होता है, 'क्षयोपशम' नाम का शिथिलीभाव नहीं होता ।। केवलज्ञान-दर्शनावरण के सिवाय ज्ञानावरण, दर्शनावरण और मोहनीय के संज्वलन कषाय तथा नोकषाय और पाँच अन्तराय इतने देशघाती कर्म हैं । निद्रा की गिनती सर्वघाती में की गई है। कर्म की फलप्रद शक्ति को 'रस कहते हैं। उसकी तीव्रता मन्दता की तरतमता बहुविध है। स्वाघात्य गुण का सर्वथा घात करनेवाली कर्मप्रकृतियाँ सर्वघाती और देशतः (अंशतः) घात करनेवाली देशघाती कहलाती हैं। सर्वघाती कर्म का रस सर्वघाती ही होता है, जबकि देशघाती कर्म का रस कोई तो सर्वघाती होता है और कोई देशघाती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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