SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनदर्शन इन निद्रापंचक आदि भावों का उपर्युक्त इक्कीस में शास्त्रों ने समावेश किया है और अन्य भिन्न भिन्न तरीकों से भी उनका समावेश किया जा सकता है। १९४ इक्कीस औदयिक भाव ये हैं १. अज्ञान, २. असिद्धत्व, ३. असंयम, ४-९. छह लेश्या, १०- १३. चार कषाय, १४-१७. चार गति, १८ - २०. तीन वेद और २१. मिथ्यात्व । पारिणामिक भाव आत्मरूप जीवत्व तथा आत्मा की विशेष स्थितिरूप भव्यत्व और अभव्यत्व इस प्रकार कुल तीन पारिणामिक भाव कहे गये हैं । तीन पारिणामिक भाव १. जीवत्व, २. भव्यत्व और ३. अभव्यत्व । इस प्रकार उपर्युक्त उल्लेखानुसार औपशमिक भाव के क्षायिक भाव के क्षायोपशमिक भाव के औदयिक भाव के पारिणामिक भाव के २ भेद ९ भेद १८ भेद २१ भेद ३ भेद हमने देख लिए । अब ये मुख्य-मुख्य भाव कितने-कितने कहाँकहाँ प्राप्त होते हैं इसका भी तनिक अवलोकन कर लें । क्षायिक और पारिणामिक ये दो ही भाव सिद्ध आत्मा में होते हैंज्ञानादि क्षायिक भाव और जीवत्व पारिणामिक भाव । क्षायिक - औदयिक-पारिणामिक यह त्रिकसंयोग ही (तीन ही भाव) भवस्थ केवली में होता है । उनमें ज्ञानादि क्षायिक भाव हैं, मनुष्यगति और लेश्या औदयिक भाव हैं तथा पारिणामिक भाव जीवत्व है । 1 क्षायोपशमिक-औदयिक - पारिणामिक ये तीन भाव केवल छद्मस्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy