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________________ १९२ जैनदर्शन १. केवलज्ञान, २. केवलदर्शन, ३ सम्यक्त्व, ४. चारित्र और ५-९ दानादि पाँच लब्धियाँ । क्षायोपशमिक भाव घाती कर्मों के 'क्षयोपशम' (एक प्रकार के शिथिलीभाव) से प्राप्त होनेवाली अवस्था क्षायोपशमिक भाव कहलाती है। ज्ञानावरण कर्म के प्रारम्भ के चार भेदों के क्षयोपशम से सम्पादित मतिज्ञान तथा मतिकुज्ञान, श्रुतज्ञान तथा श्रुतकुज्ञान, अवधिज्ञान तथा विभंगज्ञान और मनःपर्यायज्ञान-इस प्रकार सात भेद, दर्शनावरण के क्षयोपशम से साधित चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन-ये तीन भेद, मोहनीय कर्म के एक भेद दर्शनमोहनीय के क्षयोपशम से प्राप्त सम्यक्त्व और दूसरे भेद चारित्रमोहनीय के क्षयोपशम से प्राप्त देशविरतिरूप अथवा सर्वविरतिरूप चारित्र-इस प्रकार मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से साधित तीन भेद तथा अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से उपलभ्य दानादि पाँच लब्धियाँ--इस प्रकार कुल मिला कर (७+३+३+५) अठारह भेद क्षायोपशमिक भाव के गिनाए गए हैं। ऊपर के वक्तव्य से देखा जा सकता है कि सम्यक्त्व और चारित्र तीन प्रकार का है : औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक । क्योंकि मोहनीय के उपशम, क्षयोपशम और क्षय तीनों होते हैं अतः इन तीनों से साध्य सम्यक्त्व और चारित्र भी तीन प्रकार का है । अन्तराय कर्म के क्षयोपशम और क्षय ये दो ही होते हैं, अत: दानादि पाँच लब्धियाँ क्षायोपशमिक तथा क्षायिक इन दो ही भावों में आती हैं । ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम तथा क्षय ये दो ही होने से सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन क्षायोपमिक भाव तथा क्षायिक भाव इन दो भावों में आते हैं और असम्यग्ज्ञान (मतिरूप, श्रुतरूप तथा विभंगरूप) केवल क्षायोपशमिक भाव में ही आते हैं । क्षायोपशमिक भाव के १८ भेद इस प्रकार हैं १. मतिज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनःपर्यायज्ञान, ५. मतिअसम्यग्ज्ञान, ६. श्रुत-असम्यग्ज्ञान, ७. विभंगज्ञान, ८. चक्षुदर्शन, ९. अचक्षुदर्शन, १०. अवधिदर्शन, ११. सम्यक्त्व, १२ देशविरति, १३. सर्वविरति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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