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________________ १६७ तृतीय खण्ड (९) अन्तर्युद्ध मानसिक मन्दता की क्या बात करनी ? बहुत से मनुष्य ऐसे कमजोर मन के होते हैं कि ये स्वयं ही अपना पतन करानेवाले प्रलोभन के संसर्ग के स्वप्न देखते रहते हैं और उसकी प्राप्ति के लिये इधर-उधर के मिथ्या प्रयत्न करते हैं । ____बाहर की परिस्थिति मनुष्य के पतन के लिये कारण-भूत होती है, परन्तु सच्ची बात तो यह है कि जिस प्रकार वातावरण में रहे हए रोग के जन्तु दुर्बल जीवन शक्तिवाले मनुष्य पर आक्रमण करके उसे आक्रान्त करते हैं और समर्थ प्राणशक्तिवाले पर उसका प्रभाव बिलकुल नहीं पड़ता, उसी प्रकार बाहर से प्रलोभन, बासना से भरे हुए दुर्बल मन के मनुष्य का अध:पतन करते हैं, न कि सत्त्वपूर्ण मन के मनुष्य का । मनुष्य अपनी दुर्बलताओं के लिये परिस्थिति को दोष देता है और ऐसा मनाता है कि 'क्या करूँ ? लालच सामने आई', इसलिये मैं टिक न सका ।' परन्तु परिस्थिति को दोष देने की अपेक्षा अपनी मानसिक निर्बलता का दोष निकालना ही अधिक सङ्गत और यथार्थ है । मनुष्य का मन लालच की खोज में रहता है, उसमें उसे रस पड़ता है, अतः लालच सामने आते ही वह गिरता है या स्वयं हर्षावेश से उसका स्वागत करता है ! अतएव विकास की इच्छा रखनेवाले मनुष्य को चाहिए कि अपनी निर्बलता समझ करके अपने समग्र दोषों का उत्तरदायित्व अपने पर लेकर उन्हें दूर करने के लिये कटिबद्ध हो । सत्त्वशील मनोबल के आगे बाहर का भौतिक बल किस बिसात में ? सामान्यतः बाहर की प्रलोभक परिस्थितियों से दूर रहने में ही सुरक्षितता है, परन्तु इसमें भी (दूर रहने में अथवा दूर हट जाने में भी ) मनोबल की आवश्यकता पड़ेगी । इतना भी मनोबल जिसमें न हो वह तो कदम-कदम पर मरने का । प्रलोभनों के सामने टिक रहने की शक्ति प्राप्त करने का राजमार्ग प्रलोभक परिस्थितियों से हो सके वहाँ तक दूर रहने में और इस प्रकार दूर रह कर मनोबल को विकसित करने में है । ऐसी शक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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