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द्वितीय खण्ड
१४१ पशुओं का वध करके बनाए गए चमडे के जुते आदि पदार्थों के उपयोग का त्याग करके स्वाभाविक रूप से मरे हुए पशुओं के चमडे की बनी हुई वस्तुओं के उपयोग में,
शृंगारप्रेरक नाटक, सिनेमा आदि देखना बन्द कर देने में,
पुरुषों को गहने की आवश्यकता नहीं है और स्त्रियों को भी सौभाग्यदर्शक आभूषणों के अतिरिक्त दूसरे गहनों की आवश्यकता नहीं है, फिर भी धनिकता का प्रदर्शन करने के लिये अथवा दूसरों को चौंधियाने के लिये गहनों का जो ठाठ किया जाता है उसे त्यागने में,
पफ-पावडर और लिपस्टिक आदि कृत्रिम प्रसाधनों द्वारा लोगों को आकर्षित करने में जो विलासप्रियता का परिचय दिया जाता है उसका त्याग करके सच्ची शोभा शीलपालन में रही हुई है ऐसा समझकर तदनुकूल बरतने में, केवल स्वाद के लिये 'कोल्ड ड्रिंक'-शीतल पेय नाम से प्रचलित पेयों का पीना त्यागने में, संयममूलक त्याग रहा हुआ है ।
(२) प्रेममूलक त्याग—अपने पास न होने पर भी प्राप्त हो सके ऐसी वस्तुएँ, तंगी के समय दूसरों की वास्तविक आवश्यकताएँ पूर्ण करने की दृष्टि से स्वयं संकोच करके अथवा स्वयं असुविधा सहकर दूसरों की सुविधा के लिये, लेने से इनकार करना और उनका उपयोग अथवा उपभोग करना छोड़ देना प्रेममूलक त्याग है । उदाहरणार्थ, चावल खानेवाली जनता की सुविधा के लिये दूसरे अनाज पर जीवननिर्वाह कर सकने वाले लोग यदि चावल का राशन छोड़ दें तो वह प्रेममूलक त्याग होगा ।
(३) दानमूलक त्याग में 'पुणिआ' श्रावक का उदाहरण दिया जा सकता है । वह रूई में से पूनियाँ बनाकर दो मनुष्य के निर्वाह जितना कमाता था, फिर भी वह स्वयं तथा उसकी पत्नी अनुक्रम से दिन एक दिन भूखे रहकर प्रतिदिन एक अतिथि को अपने घर खिलाते थे ।।
परन्तु पाँच रुपए की नोट का त्याग करने के लिये कोई उसे फाड़ डाले तो क्या वह त्याग समझा जायगा ? अवश्य नहीं । यह तो केवल स्वच्छन्दता और मूर्खता ही समझी जायगी, क्योंकि इससे किसी को उतने पैसों का लाभ तो न हुआ, केवल उसका नाश हुआ । इसी भाँति जब बेकारी
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