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द्वितीय खण्ड
१३९
कौनसा दान बड़ा है ? इसका सादा जवाब यही है कि जिस समय जिसकी आवश्यकता हो उसी का दान बड़ा । जैसे कि प्यासे के लिये पानी का दान बड़ा, रोगी के लिये औषध का दान बड़ा, भूखे के लिये भोजन का दान बड़ा, वस्त्रहीन के लिये वस्त्र का दान बड़ा, निरक्षर के लिये अभयदान बड़ा । जिस समय जिसकी आवश्यकता पहली उसका दान पहला करना चाहिए ।
___ दान अर्थात् अर्पण उसके कर्ता एवं स्वीकार करनेवाले दोनों का उपकारक होना चाहिए । अर्पण करनेवाले का मुख्य उपकार तो यह है कि उस वस्तु पर की उसकी ममता दूर होती है और इस तरह उसका सन्तोष तथा समभाव बढ़ता है। स्वीकार करनेवाले का उपकार यह है कि उस वस्तु से उसकी जीवनयात्रा में सहायता मिलती है और इसके परिणामस्वरूप उसके सद्गुण खिलते हैं ।
शक्ति का उपयोग धन कमाने में करना और बाद में धन का दान करना इसकी अपेक्षा सीधा शक्ति का दान कैसा ? 'सीधा शक्ति का दान' का अर्थ है नि:स्वार्थ सेवाभावी जीवन धारण करना । इस प्रकार का जीवन त्यागी जीवन बन जाता है । नीति के मार्ग पर चल कर और श्रमयुक्त जीवन जी कर सद्विचार अथवा पवित्र और उपयोगी ज्ञान का दान करना, दूसरों का सत्कार्य-परायण बनने के लिये यथाशक्ति प्रेरक होना-इनका अर्थदान की अपेक्षा कहीं अधिक महत्त्व है । धन की अपेक्षा विद्या एवं ज्ञानसंस्कार का स्थान बहुत ऊँचा है, अतः इनका दान धनदान की अपेक्षा कहीं अधिक ऊँचा है। ऐसे श्रेष्ठ दान का लाभ पहुँचाने के कार्य में उपयोगी होने में ही धनयोग की प्रशस्यता है । इस तारतम्य की ओर ध्यान देना जरूरी है ।
सेवा' दान की श्रेष्ठ स्थिति है । 'अद्वेटा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एवं
1. "The service of the poor is the service of God.”
अर्थात्-दीन दुःखियों की सेवा ईश्वर की सेवा है। भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर अपने मुख्य शिष्य गौतम इन्द्रभूति को सम्बोधन करके कहते हैं कि
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