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जैनदर्शन
है, फिर भी यहाँ पर आचार के विषय में कुछ विशेष बातें लिखना आवश्यक प्रतीत होता है ।
प्रथम साधुधर्म से सम्बन्ध रखनेवाले आचार को संक्षेप में देखें । साधुओं का आचार :
जैन-आचार शास्त्रों में साधु के लिये रेलगाड़ी, मोटर, एरोप्लेन, सायकल, ट्राम, बस, इक्का, गाड़ी, घोड़ा, ऊँट आदि किसी भी वाहन पर सवारी करना निषिद्ध है । साधु को पाद-विहार करने की तथा उबालकर गरम किया हुआ पानी पीने की आज्ञा है ।।
जैन साधु को आग जलाने का, आग सेकने का अथवा आग से रसोई करने का अधिकार नहीं है । भिक्षा-माधुरी-वृत्ति करने का उन्हें आदेश है । गृहस्थों को किसी प्रकार की तकलीफ अथवा संकोच न हो उस भाँति भिन्न-भिन्न घरों में से वे भिक्षा लेते हैं । साधु के लिये विशेष रसोई बनाना और वैसी रसोई लेना शास्त्रानुकूल नहीं है । इसमें से यही उद्देश
१. यदि मार्ग में नदी आए और दूसरा स्थल-मार्ग वहाँ न हो तो उसे नाव में बैठने की
आज्ञा है। महाभारत, मनुस्मृति आदि वैदिक हिन्दुधर्म के ग्रन्थों में भी संन्यासियों के लिये ऐसा
आदेश है । ३. पाश्चात्य विद्यासम्पन्न डॉक्टर भी स्वास्थ्य के लिये गरम किया हुआ जल पीना हितावह
बतलाते हैं । प्लेग, कोलेरा आदि रोगों में खूब उबाला हुआ पानी पीने को वे कहते हैं । वैज्ञानिकों की शोध के अनुसार पानी में ऐसे अनेक सूक्ष्म जीव होते हैं जिन्हें हम आँखों से देख नहीं सकते, किन्तु सूक्ष्मदर्शक यन्त्र (Microscope) से वे दिखाई देते हैं। पानी में होनेवाले पोरे (पूतर) आदि जीव पानी पीने के साथ शरीर में प्रविष्ट हो कर भयंकर व्याधियाँ उत्पन्न करते हैं । किसी स्थान का खराब पानी भी यदि उबाल कर पिया जाय तो वह शरीर को हानि नहीं पहुँचाता । साधु भ्रमणशील होता है अतः उसे भिन्न-भिन्न स्थलों का भिन्न-भिन्न प्रकार का पानी पीना पड़ता है। इसीलिये उष्ण
(उबाले हुए) पानी का विधान उसके स्वास्थ्य के लिये भी हितकर है । ४. अनग्निरनिकेतः स्यात्--मनुस्मृति अ. ६. श्लो, ८३. ५. चरेन्माधुकरीवृत्तिमपि म्लेच्छकुलादपि । -अविस्मृति.
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