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________________ द्वितीय खण्ड मुझे जो मिलेगा उसमें भी मैं दुःखी ही रहूँगा तो वह पापाचरण में उद्यत होगा ही नहीं । इस भावना के बारे में यह सोचना उपयोगी होगा कि संसार में दुःख बहुत हैं, प्राकृतिक दुःख भी बहुत है, चाहे जितने प्रयत्न किये जाएँ दुःख पूर्णरूप से दूर नहीं हो सकते, फिर भी ऐसी हालत में भी एक-दूसरे के साथ अन्याय करके और स्वार्थान्ध बन कर, एक-दूसरे की ओर लापरवाह रहकर दुःखों में हम जो अभिवृद्धि करते हैं वह क्या उचित हैं ? यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है कि संसार में बहुत से दुःख तो हमारे अपने दोषों के कारण हम उत्पन्न करते हैं और बढ़ाते हैं । मानवता के सद्गुणों का विकास करके और व्यापकरूप से मैत्री भाव की ज्योत जला कर, शक्य इतने उतने दुःख दूर करने का प्रयत्न हमें करना चाहिए । यही इस भावना का तात्पर्य हैं । (४) एकत्व-भावना-मनुष्य अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मरता है, हर हालत में उसका कोई साथी नहीं है ऐसा विचारणा एकत्वभावना है । स्वावलम्बन एवं अनासक्तभाव को पुष्ट करने में यह भावना उपयोगी है । परन्तु साथ ही यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि यह विश्व जिस सहयोगवृत्ति पर टिका हुआ है उसका इस भावना से खण्डन नहीं होता । कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार हम अपनी भलाई के लिये दूसरों की सहायता चाहते है उसी प्रकार दूसरे भी अपनी भलाई के लिये हमारी सहायता की अपेक्षा रखे यह स्पष्ट ही है । दूसरे की भलाई करने की योग्यता जितनी हममें होगी उसी पर इस बात का आधार है कि हम दूसरों से कितनी मात्रा में लाभ उठा सकते हैं । नानाविध सम्बन्धों का लाभ उठाने में मनुष्य की अपनी योग्यता ही उसे काम आने की। श्री एक मात्र योग्यता ही वरण करती है। अत: Deserve, then desire अर्थात् सर्वप्रथम स्वयं योग्य बनना ही इस एकत्व-भावना का अभिप्राय है । यही एकत्व अर्थात् एक तत्त्व अनेक प्रकार के सहयोग, अनेकों की मैत्री, अनेकों की सेवा के लाभ के लिये उपयोगी है । एकत्व का यह अर्थ नहीं कि व्यक्त किंवा अव्यक्तरूप से तो हम दूसरों का लाभ उठाएँ और जब उसका बदला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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