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पञ्चास्तिकायः ।
अयनं, संवत्सरः इति । एवंविधो हि व्यवहारकालः केवलकालपर्यायमात्रत्वेनावधारयितुमशक्यत्वात् परायत्त इत्युपमीयत इति ॥ २५ ॥ स द्रव्यरूपो निश्चयकालः । ननु आदित्यगत्यादिपरिणतेर्धर्मद्रव्यं सहकारिकारणं कालस्य किमायातं । नैवं । गतिपरिणतेधर्मद्रव्यं सहकारिकारणं भवति कालद्रव्यं च, सहकारिकारणानि बहून्यपि भवन्ति, यतः कारणात् घटोत्पत्तौ कुम्भकारचक्रचीवरादिवत् मत्स्यादीनां जलादिवत् मनुष्याणां शकटादिवत् विद्याधराणां विद्यामन्त्रौषधादिवत् देवानां विमानवदित्यादिकालद्रव्यं गतिकारणं । कुत्र भणितं तिष्ठतीति चेत् । “पोग्गलकरणा जीवा खंधा खलु कालकरणेहिं" क्रियावंतो भवंतीति कथयत्यने । ननु यावता कालेनैकप्रदेशातिक्रमं करोति पुद्गलपरमाणुस्तप्रमाणेन समयव्याख्यानं कृतं, स एकसमये चतुर्दशरज्जुकाले गमनकाले यावंतः प्रदेशास्तावंतः समया भवंतीति । नैवं । एकप्रदेशातिक्रमेण या समयोत्पत्तिर्भणिता सा मंदगतिगमनेन, चतुर्दशरज्जुगमनं यदेकसमये भणितं तदक्रमेण शीघ्रगत्या कथितमिति नास्ति दोषः । अत्र दृष्टांतमाह- यथा कोपि देवदत्तो योजनशतं दिनशतेन गच्छति स एव विद्याप्रभावेण दिनेनैकेन गच्छति तत्र किं दिनशतं भवति नैवैकदिनमेव तथा शीघ्रगतिगमने सति चतुर्दशरज्जुयद्यपि निश्चयकालकी समयपर्याय है तथापि जीव पुद्गलके नवजीर्णरूप परिणामसे उत्पन्न हुआ कहा जाता है। अन्यके द्वारा कालकी पर्यायका परिमाण किया जाता है, इसलिये पराधीन है, सो ही दिखाया जाता है । [ समयः ] मंदगतिसे परिणत जो परमाणु उसकी अतिसूक्ष्म चाल जितने में हो सो समय है [ निमिषः ] जितनेमें नेत्रकी पलक खुले उसका नाम निमिष है। असंख्यात समय जब बीतते हैं, तब एक निमिष होता है । और [ काष्टा ] पंद्रह निमिष मिलैं तो एक काष्टा होती है [ च ] और [ कला ] जो वीस काष्टा हों तो एक कला होती है । और [ नाली ] कुछ अधिक जो बीस कला वीते तो एक नाली वा घड़ी होती है । सो जलकटोरी, घड़ीयाल आदिकसे जानी जाती है। जो दो घड़ी हो तो मुहूर्त होता है। [ ततः दिवारानं ] जो तीस महूरत बीत जायें तो एक दिनरात्रि होती है, सो सूर्यकी गतिसे जाना जाता है। और [ मासत्वयनसंवत्सरं ] तीस दिनका महीना, दो महीने की ऋतु, तीन ऋतुका अयन, दो अयनका एक वर्ष होता है और जहाँ तक वर्ष गिने जाँय, वहाँ तक संख्यातकाल कहा जाता है । इसके उपरांत पल्य, सागर आदिक असंख्यात वा अनंतकाल जानना । यह व्यवहारकाल इसी प्रकार द्रव्यके परिणमनकी मर्यादासे गिन लिया जाता है । मूल पर्याय निश्चयकाल है। सबसे सूक्ष्म 'समय' नामक कालकी पर्याय है । अन्य सब स्थूलकालकी पर्याय हैं। समयके अतिरिक्त अन्य कालका सूक्ष्म भेद कोई नहीं है। परद्रव्यके परिणमनके विना व्यवहारकालकी मर्यादा नहीं कही जातो । इस कारण यह पराधीन है। निश्चयकाल
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