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पश्चास्तिकायः ।
अत्र व्यवहारकालस्य कथंचित्परायत्तत्वं द्योतितम् ;
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समओ णिमिसो कट्टा कला य णाली तदो दिवारती । मासोदुअयणस्वच्छरोति काला परायत्तो ॥ २५ ॥
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चेत् । आकाशस्य सर्वसाधारणावकाशदानमिव धर्मद्रव्यस्य सर्वसाधारणगतिहेतुत्वमिव तथाधर्मस्य स्थितिहेतुत्वमिव । तदपि कथमिति चेत् । अन्यद्रव्यस्य गुणोऽन्यद्रव्यस्य कर्तुं नायाति संकर व्यतिकरदोष प्राप्तेः । किंच यदि सर्वद्रव्याणि स्वकीयस्वकीयपरिणतेरुपादान कारणवत् सहकारिकारणान्यपि भवन्ति तर्हि गतिस्थित्यवगाहपरिणतिविषये धर्माधर्माकाराद्रव्यैः सहकारिकारणभूतैः किं प्रयोजनं गतिस्थित्यवगाह्यः स्वयमेव भविष्यति । तथा सति किं दूषणं । जीवपुद्रलसंज्ञे द्वे एव द्रव्ये स चागमविरोधः । अत्र विशुद्धदर्शनज्ञानस्वभावस्य शुद्धजीवास्तिकायस्थालाभेऽतीतानंतकाले संसारचक्रे भ्रमितोऽयं जीवः, ततः कारणाद्वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा समस्तरागादिरूपसंकल्पविकल्पकल्लोलमालापरिहारबलेन जीवन् स एव निरंतरं ध्यातव्य इति भावार्थ: ||२४|| इति निश्चयकालव्याख्यानमुख्यत्वेन गाथाद्वयं गतं । अथ समयादिव्यवहारकालस्य निश्चयेन परमार्थ कालपर्यायस्यापि जीवपुद्गलनवजीर्णादिपरिणत्या व्यज्यमानत्वात् कथंरूप निश्चयकालद्रव्यका जानना । भावार्थ — कालद्रव्य अन्य द्रव्योंकी परिणतिको सहाई है । कैसे ? जैसेकि - शीतकाल में शिष्यजन पठनक्रिया अपने आप करते हैं, उनको बहिरंगमें अग्नि सहाय होती है । तथा जैसे कुंभकार का चाक आपही से फिरता है, उसके परिभ्रमणको सहाय नीचेकी कीली होती है । इसी प्रकार सब द्रव्योंकी परणतिको निमित्तमृत कालद्रव्य है ॥ २४ ॥ यहां कोई प्रश्न करे कि - लोकाकाश से बाहर कालद्रव्य नहीं है तब आकाश किसकी सहायता से परिणमता है ? उसका उत्तर - जैसे कुम्भकारका चाक एक जगह फिराया जाता है, परंतु वह चाक सर्वांग फिरता है । तथा जैसे - एक जगह स्पर्शेन्द्रियका मनोज्ञ विषय होता है, परंतु सुखका अनुभव सर्वांग होता है । तथा - सर्प एक जगह काटता है, परंतु विष सर्वागमें चढ़ता है । तथा फोड़ा आदि व्याधि एक जगह होती है, परंतु वेदना सर्वाङ्गमें होती है - वैसे ही कालद्रव्य लोकाकाशमें तिष्ठता है, परंतु अलोकाकाशकी परिणतिको भी निमित्तकारणरूप सहाय होता है । फिर यहाँ कोई प्रश्न करे कि - कालद्रव्य अन्यद्रव्योंकी परिणतिको तो सहाय है, परंतु कालद्रव्यकी परिणतिको कौन सहाय है ? उत्तर - कालको काल ही सहाय है । जैसे कि आकाशको आधार आकाश ही है । तथा जैसे ज्ञान सूर्य रत्नदीपादिक पदार्थ स्वपर प्रकाशक होते हैं । इनके सहाय नहीं होती है, वैसे ही कालद्रव्य भी स्वपरिणतिको स्वयं ही परिणतिको अन्य निमित्त नहीं है । फिर कोई प्रश्न करे कि जैसे
प्रकाशको अन्य वस्तु सहाय है । इसकी काल अपनी परिण
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