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अध्यात्मयोगी आचार्य कुन्दकुन्द
जइ पउमणंदिणाहो, सोमंधरसामि दिव्वणाणेण । ण विवोहइ तो समणा, कहं सुमग्गं पयाणंति ॥
-देवसेनाचार्य.
अर्थ-विदेह क्षेत्र के वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामो से प्राप्त किये हुये दिव्य ज्ञान के द्वारा श्री पद्मनंदिनाथ ( श्री कुन्दकुन्दाचार्य ) ने वोध नहीं दिया होता तो मुनिजन सच्चे मार्ग को कैसे जानते ?
............"कौण्डकुन्दो यतीन्द्रः । रजोभिरस्पृष्टतमत्वमन्तर्बाह्य ऽपि संव्यंजयितुं यतीशः । रजःपदं भूमितलं विहाय, चचार मन्ये चतुरंगुलं सः॥
-विध्यगिरि-शिलालेख. अर्थ-यतीश्वर कुन्दकुन्दाचार्य रज से भरी हुई भूमि को छोड़कर चार अंगुल ऊपर आकाश में चलते हैं, उससे मैं यह समझता हूँ कि वे अंतरंग तथा बहिरंग रज से अत्यन्त अस्पृष्ट थे।
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