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________________ [ २३ ] और योगसार, पुरुषार्थं सिद्धयुपाय, इष्टोपदेश, प्रशमरतिप्रकरण, न्यायावतार, स्याद्वाजमंजरी, सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र, ज्ञानार्णव, बृहद्रव्य संग्रह, पंचास्तिकाय, लब्धिसार-क्षपणासार, द्रव्यानुयोगतर्कणा, सप्तभंगीतरंगिणी, उपदेशछाया और आत्मसिद्धि, भावना-बोध, श्रीमद्राजचन्द्र आदि ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में संस्था के प्रकाशनका सब काम अगाससे ही होता है । विक्रयकेन्द्र बम्बई में भी पूर्वस्थानपर ही है । श्रीमद्रराजचन्द्र आश्रम, अगाससे गुजराती भाषामें अन्यभी उपयोगी ग्रन्थ छपे हैं । वर्तमान में निम्नलिखित स्थानोंपर श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम व मन्दिर आदि संस्थाएं स्थापित हैं, जहां पर मुमुक्षु-बन्धु मिलकर आत्मकल्याणार्थ वीतराग-तत्त्वज्ञानका लाभ उठाते हैं । वे स्थान हैं- अगास, ववाणिया, राजकोट, वड़वा, खंभात, काविठा, सीमरडा, भादरण, नार, सुणाव, नरोड़ा, सडोदरा, धामण, अमदावाद, ईडर, सुरेन्द्रनगर, वसो, वटामण, उत्तरसंडा, बोरसद, आहोर (राज०), हम्पी ( दक्षिण भारत ), इन्दौर ( म०प्र०); बम्बई - घोटकोपर, देवलाली, मोम्बासा ( आफ्रिका ) | अन्तमें, वीतराग - विज्ञानके निधान तीर्थंकरादि महापुरुषों द्वारा उपदिष्ट सर्वोपरि - आत्मधर्म + का अविरल प्रवाह जन-जनके अन्तर में प्रवाहित हो, यही भावना है । श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास कार्तिकी पूर्णिमा, सं० २०२५ Jain Education International } For Private & Personal Use Only - बाबूलाल सिद्धसेन जैन www.jainelibrary.org
SR No.002941
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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