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ही चिन्तामें पड़ गया हूँ । मेरा जो कुछ होना हो, वह भले हो, परन्तु आप विश्वास रखना कि मैं आपको आजके बाजार-भावसे सौदा चुका दूंगा। आप जरा भी चिन्ता न करें।
यह सुनकर राजचन्द्रजी करुणाभरी आवाजमें बोले : "वाह ! भाई, वाह ! मैं चिन्ता क्यों न करू ? तुमको सौदेकी चिन्ता होती हो तो मुझे चिन्ता क्यों न होनी चाहिये ? परन्तु हम दोनों की चिन्ताका मूल कारण यह चिट्ठी ही है न ? यदि इसको ही फाड़कर फेंक दें तो हम दोनोंकी चिन्ता मिट जायगी।"
यौं कहकर श्रीमद् राजचन्द्रने सहजभावसे वह दस्तावेज फाड़ डाला । तत्पश्चात् श्रीमद्जी बोले : "भाई, इस चिट्ठीके कारण तुम्हारे हाथपांव बंधे हुए थे। बाजारभाव बढ़ जानेसे तुमसे मेरे साठ सत्तर हजार रुपये लेना निकलते हैं, परन्तु मैं तुम्हारी स्थिति समझ सकता हूँ । इतने अधिक रुपये मैं तुमसे लू तो तुम्हारी क्या दशा हो ? परन्तु राजचन्द्र दूध पी सकता है, खून नहीं !"
वह व्यापारी कृतज्ञ-भावसे श्रीमद्की ओर स्तब्ध होकर देखता ही रहा । भविष्यवक्ता, निमित्तज्ञानी।
श्रीमद्जीका ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान भी प्रखर था। वे जन्मकुंडली, वर्षफल एवं अन्य चिह्न देखकर भविष्यकी सूचना कर देते थे। श्रीजूठाभाई (एक मुमुक्षु ) के मरणके बारे में उन्होंने २। मास पूर्व स्पष्ट बता दिया था । एक बार सं० १९५५ की चैत्र वदी ८ को मोरबीमें दोपहरके ४ बजे पूर्वदिशाके आकाशमें काले बादल देखे और उन्हें दुष्काल पड़नेका निमित्त जानकर उन्होंने कहा कि 'ऋतुको सन्निपात हुआ है ।' इस वर्ष १९५५ का चौमासा कोरा रहा-वर्षा नहीं हुई और १९५६ में भयंकर दुष्काल पड़ा । वे दूसरेके मनकी बातको भी सरलतासे जान लेते थे। यह सब उनकी निर्मल आत्मशक्तिका प्रभाव था। कवि-लेखक ।
श्रीमद्जी में, अपने विचारोंकी अभिव्यक्ति पद्यरूप में करनेकी सहज क्षमता थी। उन्होंने सामाजिक रचनाओंमें-'स्त्रीनीतिबोधक', 'सद्बोधशतक' 'आर्य प्रजानी पडती' 'हुन्नरकळा वधारवा विषे' सद्गुण, सुनीति, सत्य विषे' आदि अनेक रचनाएं केवल ८ वर्षकी वयमें लिखी थीं, जिनका एक संग्रह प्रकाशित हुआ है । ९ वर्षकी आयुमें उन्होंने रामायण और महाभारतकी भी पद्य-रचना की थी जो प्राप्त नहीं हो सकी। इसके अतिरिक्त जो उनका मूल विषय आत्मज्ञान था उसमें उनकी अनेक रचनाएं हैं । प्रमुखरूपसे 'आत्मसिद्धि' (१४२ दोहे ) 'अमूल्य तत्त्वविचार' 'भक्तिना वीस दोहरा' 'ज्ञानमीमांसा' 'परमपदप्राप्तिनी भावना' (अपूर्व अवसर ) 'मूळमार्ग रहस्य' 'जिनवाणीनी स्तुति' 'बारह भावना' और 'तृष्णानी विचित्रता' हैं। अन्य भी बहुतसी रचनाएं हैं, जो भिन्न-भिन्न वर्षों में लिखी हैं।
'आत्मसिद्धि'-शास्त्रकी रचना तो आपने मात्र डेढ़ घंटेमें, श्री सौभागभाई, डूगरभाई आदि मुमुक्षुओंके हितार्थ नडियादमें आश्विन वदी १ ( गुजराती) गुरुवार सं० १९५२ को २९ वें । देखिये-दैनिक नोंधसे लिया गया कथन, पत्र क्र. ११६, ११७ ( 'श्रीमदुराजचन्द्र' गुजराती)
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