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पश्चास्तिकायः ।
स्येति । ततः क्वचित्परमाणौ गंधगुणे, क्वचित् गंधरसगुणयोः, क्वचित् गंधरस रूपगुणेषु अपकृष्यमाणेषु तदविभक्तप्रदेशः परमाणुरेव विनश्यतीति । न तदपकर्षो युक्तः । ततः पृथिव्यप्तेजोवायुरूपस्य धातुचतुष्कस्यैक एव परमाणुः कारणं । परिणामवशात् विचित्रो हि परमाणोः परिणामगुणः क्वचित्कस्यचिद्गुणस्य व्यक्ताव्यक्तत्वेन विचित्रां परिणतिमादधाति । यथा च तस्यै परिणामवशादव्यक्तो गंधादिगुणोऽस्तीति प्रतिज्ञायते न तथा शब्दोऽप्यव्यक्तोऽतीति ज्ञातुं शक्यते । तस्यैकप्रदेशस्यानेकप्रदेशात्मकेन शब्देन सहैकत्वविरोधादिति ॥ ७८ ॥
पूर्व कथित एकोपि परमाणुः पृथिव्यादिधातुचतुष्करूपेण कालांतरेण परिणमति स परमाणुरिति ज्ञेयः, परिणामगुणो औदयिकादिभावचतुष्टयरहितत्वेन पारिणामिकगुणः । पुनः किंविशिष्टः ? सयमसदो एकप्रदेशत्वेन कृत्वानंतपरमाणुपिंडलक्षणेन शब्दपर्यायेण सह विलक्षणत्वात्स्वयं कारण है। ये चार धातु इन परमाणुओंसे ही पैदा होते हैं । फिर कैसा है ? [ परिणामगुणः ] परिणमन स्वभाववाला है [ स्वयं अशब्द: ] आप अशब्द है, किंतु शब्दका कारण है । भावार्थ — परमाणु तो द्रव्य है, उसमें स्पर्शे रस गंध वर्ण ये चार गुण हैं । इन चारों ही गुणोंसे परमाणु मूर्तीक कहलाता है । परमाणु निर्विभाग है क्योंकि जो प्रदेश आदिमें है वही मध्य और अंतमें है । इस कारण परमाणुका दूसरा भाग नहीं होता । द्रव्य गुणमें प्रदेशभेद नहीं होता । इसकारण जो प्रदेश परमाणुका है वही प्रदेश स्पर्श रस गंध वर्णका जानना चाहिये । ये चार गुण परमाणुमें सदा काल पाये जाते हैं, परंतु गौण मुख्यके भेदसे इन गुणोंका न्यूनाधिक भी कथन किया जाता है । पृथिवी जल अग्नि वायु ये चारों ही पुद्गलजातियां परमाणुओंसे उत्पन्न हैं । इनके परमाणुओंकी जाति पृथकू नहीं है । पर्यायके भेदसे भेद होता है । पृथिवी जातिके परमाणुओंमें चारोंही गुणोंकी मुख्यता है । जलमें गंध गुणकी गौणता है, अन्य तीन गुणोंकी मुख्यता है । अग्निमें गंध और रसकी गौणता है, स्पर्श और वर्णकी मुख्यता है । वायुमें तीन गुणोंकी गौणता है, स्पर्श गुणकी मुख्यता है । पर्यायोंके कारण परमाणु में नाना प्रकारके परिणामगुण होते । कहीं पर किसी एक गुणकी प्रगटता अप्रगटताके कारण नाना प्रकारकी परिणतिको धारण करते हैं । प्रश्न- जिस प्रकार परमाणुओं के परिणमनसे गंधादिक गुण हैं उसी प्रकार शब्द भी प्रगट होता होगा ? यदि कोई ऐसी शंका करे तो उसका समाधान यह है कि परमाणु एकप्रदेशी है इस लिये शब्द प्रगट नहीं होता । शब्द
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१ पूर्वोक्तेषु एतेषु गुणेषु अपकृष्यमाणेषु गौणतां प्राप्तेषु सत्सु २ सस्य परमाणोपकर्षो विनाशो न युक्तः ३ परमाणोः ।
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