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________________ विविध आवश्यक क्रिया की सही मुद्राए-२ १. देव वंदन-चैत्यवंदन की क्रिया की सही मुद्रा. २. प्रतिक्रमण-आलोचना के समय की योग मुद्रा आंखें स्थापनाजी-प्रभुजी के चरवले की डंडी दोनों हाथों की उँगलियों समक्ष खुली रखनी चाहिए। मुख से दो अगुल की दूरी पर अपनी दाहिनी ओर मुंहपत्ति रखनी चाहिए। को एक-दूसरे के अन्दर रखनी चाहिए। रखनी चाहिए। 4D दोनों कुहनियों को पेट के ऊपर नाभि की बगल में रखनी चाहिए। पेट के ऊपर दोनों हाथों को कुहनी के साथ रखना चाहिए। चादर का उपयोग करना चाहिए। दोनों पैरों के बीच आगे ४ अंगुल का अंतर रखना चाहिए। दोनों पैरों के बीच पीछे ३ अंगुल से अधिक तथा ४ अंगुल से कम अंतर रखना चाहिए। ४. प्रतिक्रमण आलोचना के समय की जिन मुद्रा दोनों आँखें स्थापनाचार्यजी अथवा नाक की नोंक के सामने रखनी चाहिए। श्वासोश्छवास की क्रिया सहज भाव से करनी चाहिए. ३. देववंदन तथा चैत्यवंदन के समय की जिन मुद्रा। जीह्वा (जीभ ) सहज भाव से अंदर स्थिर होनी चाहिए। दोनों ओष्ट (होठ) सहजता से ऊपर नीचे की एक दूसरे को स्पर्श करें। दंत-श्रेणी एक -दूसरे को स्पर्श बाए हाथ में चरवले की न करें। कोर को पीछे तथा चादर का डंडी को आगे उपयोग करना रखनी चाहिए। चाहिए। बाएँ अथवा दाहिने हाथ की ऊँगलियों की गांठ पर काउस्सग्ग की संख्या नहीं गिननी चाहिए। दोनों हाथों को इस तरह रखना चाहिए की शरीर अथवा कपडे का स्पर्श न हो सके। दाहिने हाथ में मुंहपत्ति को तर्जनी कनिष्ठा ऊँगली के अन्दर रखनी चाहिए। दंडी को नीचे से चार ऊँगलियों से पकड़ना चाहिए तथा उसके ऊपर अंगूठे को सीधा रखना चाहिए। दोनों पैरों के बीच पीछे ३ से अधिक तथा ४से कम (ऊँगली का) अंतर रखना चाहिए। दोनों पैरों के बीच आगे ४ ऊँगली का अंतर रखना चाहिए। D rivatiPersonal USEcolor juniorary.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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