SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक के उपकरण (१) पुरुषों के लिए धोती, चादर : बिना सिले हुए अखंड, सफेद, २४ अंगुल डंडी+८ अंगुल दशी अथवा २० अंगुल स्वच्छ तथा सुती होना चाहिए । चादर दोनों ओर से किनारीवाली डंडी+१२ अंगुल दशी) होनी चाहिए तथा स्त्रियों के लिए तीन वस्त्र : मर्यादा का भली- (५) सापड़ा तथा पुस्तक : लकड़ी का सापड़ा तथा भांति पालन हो तथा मस्तक ढंका हुआ हो, ऐसे हल्के रंग के, स्वाध्याय में उपयोगी पुस्तक रखना चाहिए। अखंड व स्वच्छ सूची वस्त्र होना चाहिए। (६) मोरपंख : पुस्तक के पन्ने पलटते समय उसे प्रमार्जन (२) कटासना : डेढ़ हाथ लम्बा व चौड़ा, गर्म, स्वच्छ, बिना सिले करने के लिए मोरपंख रखना चाहिए। हुए तथा जयणा का पालन ठीक तरह से हो सके इस हेतु सफेद (७) नवकारवाली : पू. गुरुभगवंत के द्वारा अभिमंत्रित कटासना का ही उपयोग करना चाहिए। सूती स्वच्छ नवकारवाली लकड़ी की डब्बी में रखनी (३) मुहपत्ति :१६ अंगुल लम्बी तथा १६ अंगुल चौड़ी अर्थात् चाहिए। समचौरस, सूती, स्वच्छ, एक ओर बंध किनारीवाली, बिना सिली (८) स्थापनाचार्यजी : अक्ष अथवा स्थापनाचार्यजी न हों हुई तथा अक्षर रहित होनी चाहिए। तो कोई भी पुस्तक आदि नाभि के ऊपर और नाक से नीचे (४) चरवला : पुरुषों के लिए गोल डंडी तथा स्त्रियों के लिए आए, इस प्रकार सापड़ा आदि में स्थापित करना चाहिए। चौकोर डंडी होनी चाहिए । दशी गर्म ऊन की ऊपर से बनी हुई तथा (९) कंबल : गर्म ऊनी शाल लघुशंका (पेशाब) आदि नीचे से बिना बुनी हुई होनी चाहिए । डंडी चन्दन, शीशम आदि में उपयोग के लिए साथ में रखनी चाहिए। बड़े प्रतिक्रमण लकड़ी की होनी चाहिए । (डंडी+दशी का नाप ३२ अंगुल अथवा ' में विशेष रूप से रखनी चाहिए। कर्मबंध में सहायक सामायिक आदि के अधिकरण शास्त्रों में वर्णित कर्मनिर्जरा में सहायक उपकरण घुघरी के साथ रखे, बत्तीस अंगुल से अधिक या कम रखे, दसी गर्म ऊ अधिक या कम अथवा अनुपयुक्त स्थान पर प्रयोग करने से वह की न रखे अथवा पूरा बुने बिना रखे तो वह अधिकरण बनता है 'अधिकरण बनते हैं। साथ ही कर्मबंध में सहायक भी बनते हैं। (चरवला में चाबी, नवकारवाली आदि लटकाकर नहीं रखनी चाहि (१)(a) पुरुषों के लिए धोती : चादर की जगह पायजामा, तथा उसे स्वच्छ रखना चाहिए।) चरवले की डंडी से शरीर खुजलान अण्डरवियर, पतलून आदि सिले हुए वस्त्र पहनना ।पोलीएस्टर, दशी से मच्छर-मक्खी आदि भगाना, कन्धे पररखकर अन्य क्रिया करन टेरीलीन, सिन्थेटीक, रेशमी तथा प्रमाण से अधिक अथवा वह भी अधिकरण कहलाता है। कम माप का, गंदा, शौच आदि किए हुए, अशुद्ध तथा पुराने (४) मुंहपत्ति : सूती के अतिरिक्त पोलीएस्टर अथवा रेशमी र वस्त्र, पूजा के वस्त्र पहनना तथा धोती पहनने पर और गांठ अक्षरवाली रखे, मुड़ी हुई तथा एक छोर बंद न हो, १६ अंगुल से अधि बांधने पर अधिकरण कहलाता है। (लुंगी के समान धोती कभी या कम, गंदी तथा फटी हुई -छिद्रयुक्त रखे, उल्टी रखे, तो अधिका नहीं पहननी चाहिए।) बनती है। (b) स्त्रियों के लिए वेष-भूषा : मर्यादा का पालन न हो, ऐसे (५) पुस्तक-सापड़ा : पुस्तक को कटासने पर या पैर पर अथवा न तथा तीन से अधिक वस्त्र रखे। साथ ही सूती के अतिरिक्त जो जमीन पर रखे,सापड़ा प्लास्टिक आदि निम्न कोटि का रखे तथा टूर वस्त्र पहनकरमल-मूत्र त्याग किया हो, ऐसे अशुद्धवस्त्र रखे तो फूटा रखे और दैनिक-समाचार-मैगेज़िन, विशेषांक आदि वाचन करे वह अधिकरण कहलाता है। अधिकरण बनता है। (पुस्तक का कटासना-चरवला, मुहपत्ति (नोट:-सामायिक-पौषध करते समय पुरुष साधु भगवंत की और नाभि से नीचे के अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिए।) भांति तथा स्त्रिया साध्वीजी भगवंत के समान मानी जाती है। (६) कांबली : रेशम अथवा केशमीलॉन की हो, रंगीन हो, प्रमाण अतः पुरुष किसी भी प्रकार के अलंकार, जैसे अगूठी, चेन, अधिक या कम लंबी-चौड़ी हो (शास्त्रीय प्रमाण : मस्तक से लेकरदे घड़ी, ब्रेसलेट आदि न पहनें तथा स्त्रिया सौभाग्य चिह्न के हाथ तथा आधा शरीरढंका हुआ होना चाहिए।)कांबली उपयुक्त काल अतिरिक्त कुछ भी न पहने । विद्युत् घड़ी (इलेक्ट्रीकल वॉच) ओढ़ने के बाद तुरन्त मोड़कर रख दे, अस्वच्छ रखे, गंदी, मैली-कुचै आदि कोई भी साधन न तो पहनना चाहिए, न रखना चाहिए, न फटी-पुरानी तथा छिद्रयुक्त होने से वह अधिकरण बनती है। उसका स्पर्श भी करना चाहिए।) । (७) मातरिया : पुराने पूजा के वस्त्र,सूती के अतिरिक्त अन्य कोई वस्त्र, (३)चरवला : पुरुष चौरस डंडी तथा स्त्रिया गोल डंडी न रखे, हुए,जुड़े हुए, सिले हुए तथा छिद्रवाले रखे,लुंगी या तौलिए के समाना डंडी प्लास्टिक, एल्युमिनियम, स्टील, चांदी अथवा सोने की अथवा मैला-कुचैला रखेतोवहअधिकरण बनता है। सामायिक लेने की विधि •शुद्ध-स्वच्छ-अखंड तथा सूती वस्त्र पहनना चाहिए .चरवले से हल्के हाथ से जमीन की प्रमार्जना करके कटासना बिछाएँ। (धोती पहनते समय गांठ नहीं बांधनी चाहिए।) .नाभि से ऊपर-नासिका से नीचे रहे इस प्रकार स्थापनाचार्यजी की स्थापना ७४ Jain Education International rates www.jptiograry.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy