SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९. श्री लोगस्स सूत्र आदान नाम : श्री लोगस्स (नामस्तव) सूत्र, | विषय : गौण नाम : चतुर्विशतिस्तव (चउवीसत्थय) :२८ पद श्री २४ भगवंतों की देववन्दन - प्रतिक्रमण में कायोत्सर्ग संपदा :२८ नाम पूर्वक स्तवना चैत्यवन्दन रत्नत्रयी की शुद्धि ध्यान में इस सूत्र गुरु-अक्षर : २७ कर मोक्षपद की करते समय यह के लिए यह सूत्र का चिन्तन करते लघु-अक्षर : २२९ सत्र बोलते-सनते बोलते-सनते समय समय की मुद्रा। याचना की जाती है। समय की मुद्रा। की मुद्रा। छंद का नाम : सिलोगो; राग : 'दर्शनं देवदेवस्य'(प्रभु स्तुति) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पदक्रमानुसारी अर्थ लोगस्स उज्जोअ-गरे, लो-गस्-स उज-जोअ-गरे, लोक में उद्योत (प्रकाश) करने वाले,लोक में स्थिर सर्व द्रव्यों के यथार्थ स्वरूप को प्रगटकरने वाले, धम्म-तित्थ-यरे जिणे। धम्-म-तित्-थ-यरे जिणे। धर्म रूपी तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, अरिहंते कित्तइस्सं, अरि-हन-ते-कित्-त-इस-सम्, | त्रैलोक्य पूज्यों की स्तुति करूँगा। चउवीसं पिकेवली॥१॥ चउ-वी-सम्-पिकेव-ली॥१॥ चौबीसों,केवलियों की।१. छंद का नाम : गाहा; राग : 'जिण जम्म समये मेरु सिहरे'(स्नात्र पूजा) उसभ-मजिअंचवंदे, उस-भ-मजि-अम् च वन्-दे, श्री ऋषभदेव और श्री अजितनाथको मैं वंदन करता है। संभव-मभिणंदणंच- सम्-भव-मभि-णन्-दणम् श्रीसंभवनाथ और श्रीअभिनंदन स्वामी को और श्री सुमइंच। च सुम-इम्-च। सुमतिनाथ को, पउम-प्पहं सुपासं, पउ-मप्-पहम्-सुपा-सम्, श्री पद्मप्रभ स्वामीको, श्रीसुपार्श्वनाथ को, जिणंच चंद-प्पहं वंदे ॥२॥ जिणम् च चन्-दप-पहम् वन्-दे॥२॥ और श्रीचंद्रप्रभ जिनेश्वरको मैं वंदन करता हू।२. ___गाथार्थ : लोक में प्रकाश करने वाले, धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, राग-द्वेषादि के विजेता एवं त्रैलोक्य पूज्य चौबीसों केवलियों की मै स्तुति करूँगा। श्री ऋषभदेव, श्री अजितनाथ, श्री संभवनाथ, श्री अभिनंदन स्वामी और श्री सुमतिनाथ को मैं वंदन करता है। श्री पद्मप्रभ स्वामी, श्री सुपार्श्वनाथ और श्री चंद्रप्रभ जिनेश्वर को मैं वंदन करता हूँ। १.२. सुविहिं च पुष्फ-दंतं, सुवि-हिम् च पुप्-फ-दन्-तम्, 1 श्री सुविधिनाथ यानि श्री पुष्पदंत (श्री सुविधिनाथ का दूसरा नाम) को, सीअल-सिज्जंस- सीअ-ल सिज्-जन्-स श्री शीतलनाथ, श्री श्रेयांसनाथ और वासुपुज्जं च। वासु-पुज्-जम् च। श्री वासुपूज्य स्वामी को, विमल-मणंतं च जिणं, विमल-मणन्-तम् च जिणम्, श्री विमलनाथ और श्री अनंतनाथ जिनेश्वर को धम्म संति च वंदामि ॥३॥ धम्-मम् सन्-तिम् च वन्-दामि ॥३॥ श्री धर्मनाथ और श्री शांतिनाथ को मैं वंदन करता है।३. गाथार्थ : श्री सुविधिनाथ यानि श्री पुष्पदंत, श्री शीतलनाथ, श्री श्रेयांसनाथ, श्री वासुपूज्य स्वामी, श्री विमलनाथ, श्री अनंतनाथ, श्री धर्मनाथ और श्री शांतिनाथ जिनेश्वर को मैं वंदन करता हूँ। ३. कुंथुअरं च मल्लिं, कुन्-थम् अरम्चमल्-लिम्, कुंथुनाथ,श्रीअरनाथ और श्रीमल्लिनाथको वंदे मुणिसुव्वयं वन्-दे मुणि-सुव्-वयम्- श्री मुनिसुव्रत स्वामी और नमि-जिणंच। नमि जिणम्च। श्रीनमिनाथ जिनेश्वर को मैं वंदन करता हूँ। वंदामि रिटु-नेमि, वन्-दामि रिट्-ठ-नेमिम्, मैवंदन करताहूँ।श्रीअरिष्टनेमि (नेमिनाथ )को पासंतह वद्धमाणंच॥४॥ पासम्तह वद्-ध-माणम्च॥४॥ और श्री पार्श्वनाथ तथा श्रीवर्धमान(महावीर) स्वामी को।४. गाथार्थ : श्री कुंथुनाथ, श्री अरनाथ, श्री मल्लिनाथ, श्री मुनिसुव्रत स्वामी और श्री नमिनाथ जिनेश्वरको मैं वंदन करता हूँ। श्री अरिष्टनेमि, श्री पार्श्वनाथ और श्रीवर्धमान स्वामी को मैं वंदन करताह।४. Dreyer
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy